सं.पु.
सं.गृह
दीवार आदि घेर कर मनुष्य द्वारा अपने लिए बनाया हुआ रहने का स्थान, आवास, मकान। पर्याय.--अगार, आंमस, आथांण, आरांम, आलय, आसपद, आसय, आस्रय, ऐण, ऐवास, ओक, कुट, गेह, ग्रह, जाग, थांन, धमळ, धांम, धिसण, निकेत, निलय, निवासपद, बसती, भवन, मंदर, मकांन, रहण, बसी, वास, विस्रांम, वेसंम, सदन, सदम, सुथांनक, सोध।
- मुहावरा--1.अंधारे घर रौ उजाळौ--भाग्यवांन, तेजस्वी, कुलदीपक, अत्यन्त सुंदर.
- मुहावरा--2.आपरौ घर जांणणौ--अपना घर समझना, संकोच न करना, आराम की जगह समझना, ऐसा स्थान समझना जहाँ घर का सा व्यवहार हो.
- मुहावरा--3.आपरौ घर समझणौ--देखो मुहा.सं.2.
- मुहावरा--4.घर आबाद करणौ--विवाह कर लेना, किसी सूने घर में निवास करना.
- मुहावरा--5.घर उजड़णौ--परिवार की दशा बिगड़ना, कुल की समृद्धि नष्ट होना, परिवार पर विपत्ति होना, घर के प्राणियों का तितर-बितर होना या मर जाना.
- मुहावरा--6.घर ऊठणौ--घर बनना, इमारत का खड़ा होना, देखो 'घर उजड़णौ'.
- मुहावरा--7.घर करणौ--बसना, रहना, निवास करना, किसी वस्तु या प्राणी का जमने या ठहरने के लिए गड्ढ़ा करना, घुसना, बिल बनाना, पत्नी भाव से किसी के घर में रहना, खसम करना, नया पति स्वीकार करना.
- मुहावरा--8.घर काटण (खावण) नै दौड़णौ--किसी के बिना घर का सूना लगना.
- मुहावरा--9.घर खाली छोडणौ--गोटी के खेल में आगे के लिए जगह छोड़ना.
- मुहावरा--10.घर खोणौ, घर खोवणौ--घर का सत्यानाश करना, घर उजाड़ना, घर की संपत्ति नष्ट करना.
- मुहावरा--11.घर गमाणौ--घर की समृद्धि एवं संपत्ति नष्ट करना.
- मुहावरा--12.घर-घर--हर एक घर में, सबके यहाँ.
- मुहावरा--13.घर-घर रौ होणौ--तितर-बितर हो जाना, मारे-मारे फिरना, बेठिकाने हो जाना, बिना घर के होना.
- मुहावरा--14.घर-घर होणौ (मिळणौ)--हर जगह पर होना.
- मुहावरा--15.घर घालणौ--निवास करना, बस जाना.
- मुहावरा--16.घर घुसणियौ, घर घुसणौ--घर में घुसा रहने वाला, हर घड़ी अंतःपुर में पड़ा रहने वाला, सदा स्त्रियों के बीच में बैठा रहने वाला, बाहर निकल कर काम-काज न करने वाला.
- मुहावरा--17.घर चलणौ--घर का काम चलना, गुजर-बसर होना, घर का खर्च चलना.
- मुहावरा--18.घर चलाणौ--परिवार का निर्वाह करना, देखभाल कर गृहस्थी का संचालन करना.
- मुहावरा--19.घर जमणौ--गृहस्थी ठीक होना, घर का सामान इकट्ठा होना.
- मुहावरा--20.घर जमाणौ--गृहस्थी को ठीक एवं व्यवस्थित करना, घर की समृद्धि बढ़ाना.
- मुहावरा--21.घर जंवाई करणौ--दामाद को अपने घर में रखना.
- मुहावरा--22.घर जाणौ--घर का विनाश होना, घर के सभी सदस्यों का कहीं जाना.
- मुहावरा--23.घर डुबोणौ--परिवार की बेइज्जाती करना, घर का धन बर्बाद करना, घर को तबाह करना.
- मुहावरा--24.घर डूबणौ--घर का नष्ट होना, घर तबाह होना, धन खत्म होना, कुल में कलंक लगना.
- मुहावरा--25.घर तक पूगणौ--घर के आदमियों तक से शिकायत करना, मां-बहिन की गाली देना.
- मुहावरा--26.घर दीठ--एक एक घर में, प्रति घर से.
- मुहावरा--27.घर देखणौ--किसी के घर कुछ मांगने जाना, घर का रास्ता देख लेना, घर के भेद की जानकारी करना.
- मुहावरा--28.घर नै माथा माथै (ऊपर) लेणौ--परिवार के सब आदमियों को परेशान कर देना, शोरगुल मचाना.
- मुहावरा--29.घर नै सिर माथै लेणौ--देखो मुहा.28.
- मुहावरा--30.घर फाटणौ--मकान की दीवार आदि से दरार पड़ना, घर में फूट एवं विरोध होना.
- मुहावरा--31.घर फूंकणौ--घर का नाश करना, घर की समृद्धि नष्ट करना, घर का धन बर्बाद करना.
- मुहावरा--32.घर फूंक नै तमासौ देखणौ--अपना घर बर्बाद करके खुशी मनाना, अपनी हानि पर प्रसन्नता होनी, प्रशंसा या तमाशे के लिए स्वयं को ही हानि पहुँचाना.
- मुहावरा--33.घर फोड़णौ--परिवार में लड़ाई-झगड़ा पैदा करना, घर में अशांति उत्पन्न करना, घर का भेद खोलना.
- मुहावरा--34.घर बंद होणौ--घर भर का मर जाना, घर में प्राणी न रह जाना, घर का कोई मालिक न रह जाना, घर के प्राणियों का तितर-बितर होना, घर में ताला लगना, किसी घर से कोई संबंध न रह जाना, गोटी के खेल में चलने की जगह न होना.
- मुहावरा--35.घर बणणौ--मकान तैयार होना, इमारत बनना, घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होना, घर संपन्न होना, धनी होना, घर के लोगों का मेल से रहना.
- मुहावरा--36.घर बणाणौ--इमारत बनाना, मकान तैयार करना, निवास-स्थान बनाना, बसना, घर की आर्थिक दशा सुधारना, घर को संपन्न बनाना, अपना लाभ करना, गृहस्थी बनाना.
- मुहावरा--37.घर बरबाद होणौ--घर बिगड़ना, घर की समृद्धि नष्ट होना, परिवार नष्ट होना, घर के लोगों में फूट होना.
- मुहावरा--38.घर बसणौ--घर आबाद होना, घर में प्राणियों का होना, घर की दशा सुधरना, घर में स्त्री या बहू आना, ब्याह होना.
- मुहावरा--39.घर बसाणौ--घर आबाद करना, घर में नये प्राणी लाना, घर की दशा सुधारना, घर को धनधान्य से पूरित करना, घर में स्त्री या बहू लाना, विवाह करना.
- मुहावरा--40.घरबार री धणियांणी होणौ--घर की मालकिन होना, बाल-बच्चेदार व गृहस्थिन होना.
- मुहावरा--41.घर बिगाड़णौ--घर में फूट पैदा करना, घर में कलह उत्पन्न करना, घर बर्बाद करना, घर की समृद्धि नष्ट करना, परिवार की हानि करना, दूसरे घर की औरत को बहकाना, कुलवती को बहकाना, घर की बहू-बेटी को बुरे मार्ग पर ले जाना.
- मुहावरा--42.घर बैठणौ--काम पर न जाना, नौकरी छोड़ना, कोई काम न मिलना, बेकार रहना, मकान का गिरना, घर में बैठना, एकांत सेवन करना.
- मुहावरा--43.घर बैठा--बिना कुछ काम किये, बिना हाथ-पैर डुबाये, बिना परिश्रम, बिना कुछ देखेभाले, बिना बाहर जाकर सब बातों का पता लगाये, बिना कहीं गये-आये--बिना यात्रा का कष्ट उठाये, एक ही स्थान पर रहते हुए.
- मुहावरा--44.घर भर--घर के सब प्राणी, सारा परिवार.
- मुहावरा--45.घर भरणौ--घर में खूब माल लाना, घर को धन-धान्य से पूर्ण करना, अपना लाभ करना, घर में ज्यादा आदमी होना, घर का प्राणियों से भरना, मेहमानों या कुटुंब वालों का घर में इकट्ठा होना, हानि पूरी होना, आगे जाने की जगह न होना.
- मुहावरा--46.घर मंडणौ--किसी आदमी का विवाह होकर उसकी गृहस्थी जमना.
- मुहावरा--47.घर मांडणौ--किसी स्त्री का पुनर्विवाह करना, गृहस्थी आरंभ करना, घर को सुव्यवस्थित करना.
- मुहावरा--48.घर माथै चढ़ नै आवणौ--लड़ाई करने के लिए किसी के घर पर जाना.
- मुहावरा--49.घर में--स्त्री, जोरू, घरवाली.
- मुहावरा--50.घर में गंगा होणी--घर में ही सब कुछ प्राप्त होना.
- मुहावरा--51.घर मेटणौ--गृहस्थी उजाड़ना, घर को तबाह करना, घर के परिवार को नष्ट करना, घर का अस्तित्व मिटा देना.
- मुहावरा--52.घर राखणौ--घर को उबारना, गृहस्थ की मर्यादा को रखना, अपनी इज्जात रखना.
- मुहावरा--53.घर रा घर--भीतर ही भीतर, गुप्त रीति से, बिना लोगों को सूचना दिये, बहुत से घर.
- मुहावरा--54.घर रा घर साफ होणा--परिवार के परिवार का सफाया होना, बहुत से घर नष्ट होना.
- मुहावरा--55.घर री, घर वाळी--गृहिणी, स्त्री.
- मुहावरा--56.घर री जुगत--गृहस्थी का प्रबंध.
- मुहावरा--57.घर री तरै बैठणौ--आराम से बैठना, खूब फैल कर बैठना, बैठने में किसी प्रकार का संकोच न करना.
- मुहावरा--58.घर री तरै रै'णौ--आराम से रहना, अपना घर समझ कर रहना.
- मुहावरा--59.घर री पूंजी--अपने पास की संपत्ति, निज का धन.
- मुहावरा--60.घर री बात--कुल से संबंध रखने वाली बात, आपस की बात, आत्मीय जनों के बीच की बात.
- मुहावरा--61.घर री रोसनी--कुलदीपक, कुल की समृद्धि करने वाला, कुल की कीर्ति को बढ़ाने वाला, भाग्यवान, अत्यंत प्रिय, लाडला.
- मुहावरा--62.घर रौ--निज का, अपना, आपस का, संबंधियों या आत्मीयजनों के बीच का संबंधी, अपने परिवार का प्राणी, पति, स्वामी.
- मुहावरा--63.घर रौ आदमी--बहुत नजदीकी, अपने ही कुटुम्ब का प्राणी, भाई-बंधु, इष्ट-मित्र, अत्यन्त विश्वासपात्र, पति.
- मुहावरा--64.घर रौ उजाळौ--परिवार की इज्जात बढ़ाने वाला, घर भर में खूबसूरत, कुलदीपक, कुल की समृद्धि को बढ़ाने वाला, भाग्यवान.
- मुहावरा--65.घर रौ घर--पूरा का पूरा परिवार, घर के सभी प्राणी.
- मुहावरा--66.घर रो घर में रै'णौ--न कुछ हानि न लाभ होना.
- मुहावरा--67.घर रौ घर साफ होणौ--परिवार के परिवार का सफाया हो जाना.
- मुहावरा--68.घर रौ चोखौ--मालदार समृद्ध कुल का, अच्छे खानदान का, खाने-पीने से खुश.
- मुहावरा--69.घर रौ दीयौ--कुलदीपक, कुल की समृद्धि करने वाला, कुल की कीर्ति को बढ़ाने वाला, भाग्यवान, अत्यन्त प्रिय.
- मुहावरा--70.घर रौ न कोई घाट रौ--जिसके रहने का कोई निश्चित स्थान न हो, बेकार, कहीं का भी नहीं, निकम्मा.
- मुहावरा--71.घर रौ नांम डुबोणौ--कुल को कलंकित करना, अपने भ्रष्ट या निकृष्ट आचरण से अपने परिवार की प्रतिष्ठा खोना, घर की बदनामी करना.
- मुहावरा--72.घर रौ बा'दर--अपने ही घर में बल दिखाने या बढ़-बढ़ कर बोलने वाला, परोक्ष में शेखी बघारने वाला और मुकाबिले के लिए सामने न आने वाला.
- मुहावरा--73.घर रौ बोझ--गृहस्थी का कारबार.
- मुहावरा--74.घर रौ बोझ उठाणौ (संभाळणौ)--गृहस्थी का कामकाज देखना, घर का प्रबंध करना, घर का खर्च चलाना.
- मुहावरा--75.घर रौ भेदियौ--अपनी गुप्त बातों को जानने वाला.
- मुहावरा--76.घर रौ भेदी--घर का सब भेद जानने वाला, ऐसा निकटस्थ मनुष्य जो सब रहस्य जानता हो.
- मुहावरा--77.घर रौ मरद--देखो 'घर रौ बा'दर'.
- मुहावरा--78.घर रौ रास्तौ पकड़णौ--अपने काम से काम रखना.
- मुहावरा--79.घर रौ रास्तौ लेणौ--अपने काम से काम रखना.
- मुहावरा--80.घर रौ वीर--देखो 'घर रौ बा'दर'.
- मुहावरा--81.घर रौ सेर--देखो 'घर रौ बा'दर'.
- मुहावरा--82.घर रौ हिसाब--अपने लेन-देन का लेखा, निज का लेखा, अपने इच्छानुसार किया हुआ हिसाब, मनमाना लेखा.
- मुहावरा--83.घर लारै--एक एक घर में, एक एक घर से.
- मुहावरा--84.घर समझणौ--निःसंकोच रहना.
- मुहावरा--85.घर सूं--पास से, पल्ले से, पति, स्वामी, स्त्री, पत्नी.
- मुहावरा--86.घर सूं देणौ--अपने पास से देना, अपनी गांठ से देना, स्वयं हानि उठाना, मूल धन से व्यय करना.
- मुहावरा--87.घर सूं बेघर करणौ--बिना शरण का कर देना, निकाल देना.
- मुहावरा--88.घरे पड़णौ--घर में आना, प्राप्त होना, मिलना मोल मिलना.
- मुहावरा--89.घरे पूगणौ--सुरक्षित स्थान पर पहुँचना, अपने घर पहुँचना.
- मुहावरा--90.घरे बैठणौ--किसी के घर पत्नी-भाव से जाना, किसी को खसम बनाना, काम पर न जाना, नौकरी छोड़ना, कोई काम न मिलना, बेकार रहना.
- मुहावरा--91.घरे बैठा--बिना मेहनत के, बिना आये-गये, देखो मुहा.'घर बैठा' (रू.भे.)
- मुहावरा--92.घरे बैठां रोटी मिळणी--बिना मेहनत की रोटी, बिना परिश्रम की जीविका.
- मुहावरा--93.घरोघर--हरएक घर, प्रत्येक घर.
- मुहावरा--94.दिल में घर करणौ--इतना पसंद आना कि उसका ध्यान सदा बना रहे, अत्यन्त प्रिय होना, प्रेम-पात्र होना।
- कहावत--1.आप तणौ घर आप रौ सूझै सौ कोसां--अपने घर की स्थिति का ज्ञान तो सौ कोस दूर बैठे हुए को भी होता है; किसी भी प्रकार के व्यय आदि को घर की स्थिति के अनुसार ही करना चाहिये.
- कहावत--2.घर आयौ नाग न पूजै, बांबी पूजण जाय--घर पर आये नाग की पूजा तो होती नहीं और विवर (साँप का बिल) पूजने जाती है; अवसर पर लाभ न उठाने वाले के प्रति.
- कहावत--3.घर आयौ वैरी ई पांमणौ--घर आये हुए शत्रु को भी अतिथि समझ उसका पूर्ण सम्मान करना चाहिये; अतिथि-सत्कार की भावना.
- कहावत--4.घर आवती लिछमी नै ठोकर नहीं मारणी--घर आती लक्ष्मी की अवहेलना नहीं करना चाहिये; सुगमता से घर बैठे धन एवं लाभदायक वस्तु प्राप्त हो रही हो तो उसे अवश्य स्वीकार करना चाहिये.
- कहावत--5.घर का डांडा सूं आंख फूटणी--घर में लगे छत के डंडे से (नीचा होने के कारण) आँख फूटना; अपने सम्बन्धियों से हानि पहुंचना.
- कहावत--6.घर की खांड करकरी लागै, गुळ चोरी कौ मीठौ--घर की शक्कर तो किरकिरी ही लगती है परन्तु चोरी का तो गुड़ भी मीठा लगता है; परायी वस्तु अधिक सुन्दर या अच्छी प्रतीत होती है.
- कहावत--7.घर की मुरगी दाळ बराबर--अपने अधिकार की वस्तु का कोई खास महत्त्व नहीं होता; उच्च वस्तु भी साधारण प्रतीत होती है, जैसे मलयाचल पर्वत पर चंदन ईंधन की भाँति जलाया जाता है; परायी वस्तु सुंदर व अच्छी प्रतीत होती है.(मि.--घर की खांड करकरी लागै, गुळ चोरी कौ मीठौ।)
- कहावत--8.घर के आंगण बोरड़ी न लगाजै--घर के आंगन में बेर का वृक्ष नहीं लगाना चाहिये क्योंकि इसके काँटों में कपड़े उलझ कर फटते हैं और पैरों में काँटे लगते हैं; बुरे व्यक्ति को घर में स्थान नहीं देना चाहिये क्योंकि वह सदैव हानि ही पहुँचाता है।
- कहावत--9.घर कौ गंडक घर में सेर--अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। (मि.मुहावरा.--'घर रौ बा'दर')
- कहावत--10.घर-घर माटी रा चूल्हा--घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं; सब की परिस्थितियाँ प्रायः समान ही हैं; घर-गृहस्थी की चिन्ता प्रायः सभी को समान रूप से ही होती है.
- कहावत--11.घर जाय नै झांझर वाजै--घर में हानि होने के समय थाली बजाना अनुचित है; बिना अवसर के बाजे अप्रिय लगते हैं.
- कहावत--12.घर जाय मांईं सूं, मांचौ जाय बांईं सूं--सौतेली माँ से घर नष्ट होता है और खाट उसकी बुनाई के अंतिम सिरे जहाँ से दावन कसी जाती है, नष्ट होती है.
- कहावत--13.घर जायां का दांत गिणूं के हाड--घर में उत्पन्न व्यक्ति को क्या परखा जाय, उसकी तो नस-नस जानी हुई होती है.
- कहावत--14.घर तौ लुगायां रा हीज कह्या है--घर तो स्त्री का ही है; घर की स्वामिनी तो स्त्री ही होती है; स्त्री होने से ही घर होता है या गृहस्थी बनती है.
- कहावत--15.घर दीया तौ मसीत ही दीया--घर में प्रकाश है तो बाहर भी प्रकाश करना संभव है; घर में सुखी है तो अन्यों को भी सुख पहुँचाने का प्रयत्न किया जा सकता है.
- कहावत--16.घर दूर घटी भारी--घर अभी दूर है और सिर पर भारी चक्की है; आलसी व सुस्त के प्रति व्यंग्य.
- कहावत--17.घर देख नै हालणौ, मांटी देख नै मालणौ--घर की स्थिति के अनुसार ही चलना चाहिये और पति की शक्ति के अनुसार ही गर्व करना चाहिये; घर की स्थिति के विपरीत चलना और पति की शक्ति के विपरीत गर्व करना अनुचित है.
- कहावत--18.घर ना गोदा नै घर ना जोदा जणा नी खेती--जिनके अपने निजी घर के जवान बैल हैं और घर के मजबूत आदमी हैं उसी की खेती अच्छी हो सकती है.
- कहावत--19.घर नी तौ घट्टी चाटै, उपाद्यौ कै'पोय चपटी--घर के तो बच्चे भूखे हैं और मांगने वाला कहता है कि मुझे रोटी बना के दे; गरीबी की हालत में दूसरे को भोजन देना कठिन होता है; खुद की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद ही दूसरे की सहायता संभव है.
- कहावत--20.घर नौ दीवौ करी नै जांणै डूंगरै दव लगाड़ै--घर का दीपक जलाना तो जानता ही नहीं और पहाड़ पर आग लगाने को उद्यत है; साधारण कार्य को भी करने का ज्ञान नहीं होते हुए भी बड़े कार्य में हाथ डालने वाले के प्रति.
- कहावत--21.घर फूट्यां घर जाय--घर में फूट पड़ने से घर उजड़ जाता है; घर की फूट बहुत बुरी है.
- कहावत--22.घर बळती कौ दीसै नी, डूंगर बळती दीसै--घर में जलती आग दिखाई नहीं देती, पहाड़ पर जलती आग दिखाई देती है; अपने दोष दिखाई नहीं देते, दूसरों के दोष दिखाई दे जाते हैं.
- कहावत--23.घर बाळ'र तीरथ नी करणी आवै--घर जला कर तीर्थ-यात्रा नहीं की जाती; घर की स्थिति के अनुसार ही पुण्य-कार्य किया जा सकता है.
- कहावत--24.घर बिना दर कठै?--घर के बिना रहने को दूसरा स्थान कहाँ है? घर में जैसी सुविधाएं मिल सकती हैं वैसी अन्य कहाँ मिल सकती हैं? घर की प्रशंसा.
- कहावत--25.घर मांहे ऊंदरा ग्यारस करे--घर में चूहे भी एकादशी करते हैं; अत्यन्त दरिद्रता के प्रति.
- कहावत--26.घर में घोड़ौ घालणौ--घर में आफत उपस्थित करना; अवांछित व्यक्ति का घर में आ फँसना; जानबूझ कर घर में कोई आफत मोल लेना.
- कहावत--27.घर में तौ फाका पड़ै, मोडा नूंतण जाय--घर में तो फाके पड़ रहे हैं और साधुओं को भोजन के लिये निमंत्रण देने चला है; अपनी शक्ति से बाहर कार्य करना अनुचित है.
- कहावत--28.घर में तौ भूंज्योड़ी भांग ही कोनी--घर में तो भुनी भांग भी नहीं; पास में कुछ भी न होने पर; अत्यन्त दरिद्रता के प्रति.
- कहावत--29.घर में नहीं अखत रा बीज कोडौ खेलै आखातीज--घर में कुछ नही है और आप मौज व ऐश उड़ा रहे हैं; गरीब स्थिति में मौज व ऐश शोभा नहीं देती.
- कहावत--30.घर में हुवै नांणा तौ बींद परणीजै कांणा--गाँठ में पैसा हो तो काने व्यक्ति का भी धूमधाम से विवाह हो सकता है; पैसा हर कठिन कार्य को भी सरल बना देता है; पैसे की प्रशंसा.
- कहावत--31.घर में नाहर नै बारै गाडर--घर में शेर और बाहर भेड़; घर में या परिचितों में वीरता की शेखी बघारने वाले कायर व्यक्ति के प्रति.
- कहावत--32.घर में नांहीं तेल तळाई, रांड मरै गुलगुलां तांईं--घर में न तेल है न कढ़ाई है फिर भी गृहिणी मिष्ठान्न के लिये मरती है; घर की माली हालत के विपरीत चलने वाली स्त्री कुलक्षणा होती है.
- कहावत--33.घर में पूचेटी रौ टाबर लाडकौ व्है--घर में सबसे छोटा बच्चा अधिक लाडला होता है; घर में सबसे छोटे बच्चे को सबसे अधिक प्यार मिलता है.
- कहावत--34.घर में बोलै डोकरा अर बा बोलै छोकरा--वृद्ध और अनुभवी व्यक्ति तो घर के झगड़े आदि घर में ही निपटा देते हैं किन्तु युवा व उद्दंड लड़के अपने घर की फूट को बाहर प्रकाशित कर देते हैं.
- कहावत--35.घर में भुवाजी थड़्यां (भचीड़ा खावै) करै--घर में भूख खड़ी है, घर की स्थिति ठीक नहीं है; दरिद्रता के प्रति.
- कहावत--36.घर में रांमजी को नांम है--घर में कुछ नहीं है; अत्यन्त गरीब स्थिति है.
- कहावत--37.घर में रांमजी रौ दीन है--घर में ईश्वर की कृपा है; गृहस्थी पूर्ण संपन्न है; ईश्वर की कृपा से गृहस्थी ठीक चल रही है.
- कहावत--38.घर में सळ नहीं है--घर की माली हालत ठीक नहीं है; किसी विशेष व्यय आदि के लिये घर में कोई साधन नहीं है.
- कहावत--39.घर में हुवै संवार तौ झख मारौ गंवार--अगर घर में लाभ होता हो तो निंदा करने वाले गंवार व्यक्तियों की परवाह नहीं करनी चाहिये.
- कहावत--40.घर में ही मोतियां रौ चौक पूरणौ--किसी बड़े कार्य को अपनेआप स्वतः ही घर पर पूरा कर लेने पर.
- कहावत--41.घर रा ऊंदरा सोरां व्है ज्यूं करौ--ऐसा कार्य करो जिससे घर के चूहे भी सुखी हों। वहीं कार्य करना अच्छा है जिसमें सब परिवार वालों का हित हो.
- कहावत--42.घर रा ही देवता नै घर रा ही पुजारी--घर के ही देव और घर के ही पुजारी। सब प्रकार की सुविधा मिलने पर यह कहावत कही जाती है।
- कहावत--43.घर री जूती नै घर रौ माथौ--खुद की जूती और खुद का ही शिर; अपने ही हाथों अपना नुकसान करने वाले के प्रति.
- कहावत--44.घर री डाकण घर रां नै नहीं खावै--घर की डायन घर के कुटुम्ब पर अपना प्रभाव नहीं डालती; दुष्टों को भी अपने पराये का ख्याल होता है.
- कहावत--45.घर री तौ रोवै है नै पड़ोसण नै फेरा भावै--घर की स्त्री तो संतुष्ट ही नहीं और पड़ौसिन शादी के लिये तैयार है; घर की स्थिति तो सुधरती नहीं एवं दूसरों को सहारा देने की तैयारी करने वाले के प्रति.
- कहावत--46.घर री मां नै कुण डाकण बतावै--अपनी माँ को कौन डायन बताता है; अपने स्वजनों के अवगुणों को कोई प्रकट नहीं करता.
- कहावत--47.घर री रीत बा'रै मत काडौ--घर की प्रथा को बाहर प्रकट नहीं करना चाहिये; घर का भेद बाहर खोलना अच्छा नहीं होता.
- कहावत--48.घर री रोटी वा'रै खावणी है--घर की रोटी बाहर खानी है; सत्कार देने वाला व्यक्ति ही खूब सत्कार और सम्मान प्राप्त करता है.
- कहावत--49.घर रौ घरकोलियौ कर दियौ--घर का घरकोलिया बना दिया; लापरवाही और अपव्यय से घर को और घर की पूंजी को नष्ट करने पर.
- कहावत--50.घर रौ छोरौ बाहर रौ बींद--घर का लड़का बाहर का वर; घर के लोगों की अपेक्षा बाहर वालों का आदर-सत्कार अधिक होता है, (मि.'घर कौ जोगी-जोगड़ौ, आंण गांव कौ सिद्ध).
- कहावत--51.घर रौ नांणौ खोटौ तौ परखबा वाळौ कांईं करै--घर का पैसा ही ठीक नहीं है तो परखने वाले का इसमें क्या दोष? अपना व्यक्ति ही जब बुरा है तो इसमें बुरा बताने वाले का क्या दोष?
- कहावत--52.घर वरसौ मेसड़ला नै घर ही डुबौ सुगाळ--घर पर ही वर्षा हो जिससे घर में ही सुकाल हो; अपना ही स्वार्थ चाहने वाले व्यक्ति केवल अपने लिए ही प्रयत्न करते हैं, परोपकार के लिए कुछ नहीं करते; स्वार्थी व्यक्तियों के प्रति.
- कहावत--53.घर सारू पावणौ है, पावणा सारू घर कोयनी--मेहमान का आदर-सत्कार घर की सामर्थ्य के अनुसार ही किया जाता है; मेहमान की स्थिति के अनुसार घर की सामर्थ्य नहीं बनती; किसी का अतिथि-सत्कार अपनी स्थिति के अनुसार ही किया जाता है.
- कहावत--54.घर सूं वाड़ौ जितौ वाड़ै सूं घर--घर से जितना दूर बाड़ा है उतना ही बाड़े से घर दूर है; पारस्परिक संबंध की निकटता को प्रकट करने के लिए कही जाने वाली कहावत.
- कहावत--55.घर सूंवावतौ खावणौ नै लोक सूवावतौ पैरणौ--घर-सुहाता खाना और लोक-सुहाता पहिनना चाहिए; जैसी घर की स्थिति हो वैसा ही खाना चाहिए और जिसे पहिनने से लोग टीका-टिप्पणी न करें वैसा ही पहिनना चाहिए। अर्थात् खाने-पीने व वेश-भूषा में व्यय अपनी स्थिति एवं समाज की परिस्थितियों को देख कर ही करना चाहिये.
- कहावत--56.घरे कांम कूड़े विस्रांम--घर पर काम अधिक हो तो खलिहान में काम के बहाने जाकर विश्राम किया जा सकता है; काम से जी चुराने वाले आलसी व सुस्त व्यक्तियों के प्रति.
- कहावत--57.घरे घांणी तेली लूखौ क्यूं खावै--तेली के घर पर कोल्हू चलता है, फिर वह रूखा-सूखा क्यों खावे; साधन-संपन्न होते हुए कष्ट क्यों देखा जाय.
- कहावत--58.घरे घोड़ौ'र पाळौ जावै--घर पर घोड़ा और फिर पैदल चलना; साधन होते हुए भी साधन का उपयोग न करना मूर्खता है.
- कहावत--59.घरे धीणौ'र लूखौ खाय--घर में दूध-दही सब है और रूखी-सूखी रोटी खाता है; साधनों के होते हुए भी साधनों का उपयोग न करने पर.
- कहावत--60.घरे नहीं बूकौ नै घांणी कढ़ावा ढूकौ--घर पर तो सामग्री नहीं और कोल्हू चलवाने का विचार करता है; स्थिति से परे कार्य करने के प्रयत्न करने पर.
- कहावत--61.सुसिया मांस खाई रे, कै' म्हारौ घर रौ रै' जाई तौ चौखौ--खरगोश माँस खायगा? खरगोश उत्तर देता है--मेरे शरीर का ही मांस बच रह जायगा तो बहुत अच्छा होगा; जिसको अपने आप की रक्षा का ही भय है वह दूसरों को क्या सतायेगा?
यौ.
घरकत्ती घरगिरस्ती, घरघुसणियौ, घरघुसणौ, घरचारौ, घरजंमाई, घरदासी, घरद्वार, घरनायक, घरफोड़ौ, घरभेदू, घरबार, घरलोचू, घरवासौ, घरसोचू।
3.कुल, वंश, घराना।
- मुहावरा--1.घर देखणौ--कुल या वंश पर विचार करना.
- मुहावरा--2.घर राखणौ--कुल की मर्यादा को रखना.
- मुहावरा--3.घर रौ उजाळौ--कुल का दीपक, कुल को चमकाने वाला।
- कहावत--घर हांण जोय लेणी पर वर हांण नीं जोणी--वर के चुनाव में कुल की अपेक्षा वर की सुयोग्यता को अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।
4.कोई वस्तु आदि रखने का डिब्बा या चोंगा, खाना.
5.पटरी आदि से घिरा हुआ स्थान, खाना, कोठा, दराज.
6.किसी वस्तु को जमाने या बैठाने का स्थान, किसी वस्तु के अँटने या समाने का स्थान.
7.छेद, बिल।
- मुहावरा--घर भरणौ--छेद मूंदना।
9.उत्पत्ति-स्थान, मूल कारण।
- कहावत--रोग रौ घर खांसी अर कळह रौ घर हांसी--रोग का मूल कारण खांसी है और झगड़े का मूल कारण हँसी है अतः अधिक हँसी करना अच्छा नहीं।
11.गृहस्थी का सामान, घर का असबाब।
- मुहावरा--घर अवेरणौ--गृहस्थी व घर के सामान सुव्यवस्थित रूप से रखना, किफायत से खर्च करना।
12.कार्यालय, कारखाना, दफ्तर.
14.आडी व खड़ी खींची हुई रेखाओं से घिरा स्थान, खाना, ज्यूं कुंडळी रौ घर.
16.शतरंज आदि खेलों का चौकोर खाना।
- मुहावरा--1.घर खाली छोडणौ--गोटी के खेल में आगे के लिए जगह छोड़ना.
- मुहावरा--2.घर बंद होणौ--गोटी के खेल में चलने की जगह न होना।