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दस्तौ  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
फा.दस्त:
1.वह जो हाथ में रहे या हाथ में आवे।
2.किसी औजार, शस्त्र आदि का वह हिस्सा जो हाथ में पकड़ा जाता है, मूठ, बेंट,
3.जग या डोगे आदि का हैंडिल,
4.(फूलों आदि का) गुच्छा, गुलदस्ता, मुट्ठा।
  • उदा.--एक दिन एक आदमी फूलां रौ दस्तौ नजर लायौ सो लीन्हौ।--नी.प्र.
5.सिपाहियों का छोटा दल,
6.कागज के चौबीस तावों की गड्ड,
7.टंटा, फिसाद, बखेड़ा?
  • उदा.--कठै ही टक बात सुणै तो तुरत आप जाय राजी कर दस्तौ मेट आवै।--कुंवरसी सांखला री वारता
8.देखो 'दस्तांनौ' (रू.भे.)
रू.भे.
दसतौ, दिस्तौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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