सं.पु.
सं.अगरू
1.सुगंधित लकड़ी वाला वृक्ष जो भूटान, आसाम आदि पहाड़ी इलाकों से प्राप्त होता है, और जिसकी लकड़ी करीब 20 वर्ष के पश्चात् पक कर खूब रसीली हो जाती है। इसके रस से ही लकड़ी की कीमत आँकी जाती है। इसकी अगरबत्ती बनती है और इत्र बनाने में भी काम आती है।
- उदा.--अरणी अगनि अगरमै भै इंधण, आहूंति घ्रत घणसार अछेह।--वेलि.
4.डिंगल के वेलिया सांणोर छंद का एक भेद विशेष जिसके प्रथम द्वाले में 40 लघु 12 गुरु कुल 64 मात्रायें हों तथा क्रम से शेष के द्वालों में 40 लघु 11 गुरु कुल 62 मात्रायें हों.(पिंगळ प्रकास)
5.प्रथम एक नगण फिर दो तगण और अंत में ह्रस्व वर्ण का एक छंद विशेष (ल.पिं.) क्रि.वि.[फा.]
3.आगे, अगाड़ी।
- उदा.--जहां पहलवां जीभ सूं, केकाउस कहियोह। अंतक केहर अगर औ, रुस्तम नंह रहियोह।--बां.दा.