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अज  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
सं.
जिसका जन्म न हुआ हो, स्वयंभू।
  • उदा.--अलाव निरंजण अज अविकारी, व्याप रह्या सब जग मांहीं।--गी.रां.
2.क्रूर*। (डिं.को.) सं.पु.[सं.]
1.देवता (अ.मा.)
2.श्रीकृष्ण (नां.मा.)
3.ब्रह्मा.(डिं.को.)
4.विष्णु.
5.शिव (अ.मा.)
6.कामदेव.
7.सूर्यवंशी राजा दशरथ के पिता.
8.बकरा, मेंढ़ा। सं.स्त्री.--
1.माया, शक्ति.
2.ज्योतिष में शुक्र की गति के अनुसार तीन नक्षत्रों की एक वीथि। क्रि.वि.[सं.अद्य, प्रा.अज्ज]
1.अभी तक.
2.अब.
3.आज।
  • उदा.--सुन स्वार विचार तजौ सब ही, अज कांम करौ सो करौ अब ही।--ऊ.का.


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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