सं.पु.
सं.अरघट्ट, प्रा.अरहट्ट, अप.रहट्ट
1.कुएं से पानी निकालने का मालाकार यंत्र, रहँट.
2.डिंगल का एक गीत (छंद) विशेष जिसके विषम पदों में चार चौकल सहित 16 मात्रायें होती हैं किन्तु आदि का चरण अपवाद है जिसमें 18 मात्रायें होती हैं। सम चरणों में दो चौकल और अंत में गुरुलघुसहित 11 मात्रायें होती हैं। इस प्रकार कुल चार या चार से अधिक द्वाले होते हैं। (र.रू.) कविकुलबोध के अनुसार प्रत्येक चरण में चार भगण तथा अंत में गुरु का एक (गीत) छंद विशेष.