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अरट  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.अरघट्ट, प्रा.अरहट्ट, अप.रहट्ट
1.कुएं से पानी निकालने का मालाकार यंत्र, रहँट.
2.डिंगल का एक गीत (छंद) विशेष जिसके विषम पदों में चार चौकल सहित 16 मात्रायें होती हैं किन्तु आदि का चरण अपवाद है जिसमें 18 मात्रायें होती हैं। सम चरणों में दो चौकल और अंत में गुरुलघुसहित 11 मात्रायें होती हैं। इस प्रकार कुल चार या चार से अधिक द्वाले होते हैं। (र.रू.) कविकुलबोध के अनुसार प्रत्येक चरण में चार भगण तथा अंत में गुरु का एक (गीत) छंद विशेष.
3.एक प्रकार की बंदूक।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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