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अरणा, अरणी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.यौ.
देखो 'अरणौ'

अरणि, अरणी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.टहनियांदार एक गुल्म विशेष जो औषधियों में प्रयुक्त होता है (अमरत).
2.काष्ठ से उत्पन्न की जाने वाली यज्ञ की अग्नि अथवा इस अग्नि को उत्पन्न करने का काष्ठ। देखो अरणौ (2)
  • उदा.--जिके वेद मूरति ब्राह्मण छै सु अरणी अगनि लगाड़ि होम करै छै।--रा.सा.सं.
3.सूर्य.[रा.]
4.एक मारवाड़ी लोक गीत।
[सं.अरुण]


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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