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आंच  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.अर्चिष्‌
1.संकट, आफत, कष्ट।
  • उदा.--सांम धरम धर सांच, चाकर जेही चालसी। ऊंनी ज्यांनै आंच, रती न आवै राजिया।--कृपाराम बारहठ (खिड़िया)
2.आग, आग की लौ.
3.ताप, गरमी।
  • उदा.--नींद न आवै बिरह सतावे, प्रेम की आंच ढुळावै।--मीरां
4.तेज, प्रताप.
5.चोट, प्रहार।
  • उदा.--मिट जोत प्रभाकर झंखमणी, तन आंच लगी गुलियल्लतणी।--पा.प्र.
6.हानि।
  • उदा.--धणी थकां दौड़ता, लूट केई धन लाता, परबत झाड़ां वैस खोस केई नर खाता। मांन जकां महाराज आंच न दीधी आवा, गुना करै बगसीस खोस दीधा धन खावा।--बुधजी आसियौ
7.क्रोध.
8.भय, डर.
9.ढालों को रखने का ढंग अथवा वह स्थान जहाँ ढालें रखी जाएं।
  • उदा.--इण भांति री कटारी बीड़ी वटवै समेत ए जदी पगां सूं लपेट नै उआंहीज ढालां री आंचां मां राखीजै छै।--रा.सा.सं.
  • उदा.--पति गंध्रप है पांच, धरतां पग धूजै धरा। आवै लाज न आंच, धर नख सूं कुचरै धवळ।--रांमनाथ कवियौ
वि.
किंचित्‌, थोड़ा।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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