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आक  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.अर्क, प्रा.अक्क
1.मंदार। क्रि.प्र.--चढ़णौ-देणौ-पावणौ-लागणौ।
  • मुहावरा--आक पावणौ--तंग करना, कष्ट देना।
  • कहावत--1.आक धतूरा नींबड़ा-यांनै सींचौ घी सूं, ज्यांरा पड़्‌या सुभाव जासी जीव सूं--दुष्ट आदमी का कितना ही भला कीजिए किन्तु वह अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता.
  • कहावत--2.आक में आंबौ नीपज्यौ--नीच कुल में अच्छा पुरुष पैदा हुआ, दुष्ट के सज्जन पुत्र जन्मा, असम्भव बात हुई.
  • कहावत--3.आक रौ कीड़ौ आक सूं राजी--प्रत्येक मनुष्य अपनी ही परिस्थिति को पसन्द करता है.
  • कहावत--4.आळी चांमड़ी आक पावै--बहुत अधिक कष्ट देना.
  • कहावत--5.मरतां मरतां ई आक पावै--अंत समय तक कष्ट देना.
  • कहावत--6.मरतौ मरतौ ई आक पावै--मरते-मरते भी दूसरो को कष्ट देना। (रू.भे.आकड़ौ, अक्क) (अल्पा.आकड़ियौ) (महत्त्व.आकड़)
2.बैलगाड़ी में थाटे (मुख्य चौड़ा तख्ता) के नीचे लगाया हुआ वह चौड़ा तख्ता जो घोड़े के खुर की आकृति का होता है। (मि.अंगठ)
[रा.]


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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