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आग  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.अग्नि, ज्वाला। पर्याय.--देखो 'अगनी'। क्रि.प्र.--करणी-जळाणी-देणी-निकाळणी-पड़णी-बरसणी-बाळणी-बुझणी-भड़कणी-लगणी।
  • मुहावरा--1.आगबबूळौ होणौ--अत्यन्त क्रोधित होना.
  • मुहावरा--2.आग बुझणी--लड़ाई झगड़ा शांत होना, भूख शांत होना.
  • मुहावरा--3.आग भड़कणी--लड़ाई पैदा होना.
  • मुहावरा--4.आग में घी या पूळौ नांखणौ--कष्ट पर कष्ट देना, किसी के क्रोध को और भड़काना.
  • मुहावरा--5.आग में कूदणौ--आफत में पड़ना, जानबूझ कर आफत मोल लेना.
  • मुहावरा--6.आग लगणी--डाह या कुढ़न होना, क्रोधित होना, हृदय के किसी उद्‌घार का उमड़ना, बरबाद होना.
  • मुहावरा--7.आग लगाणी--उपद्रव मचाना, पेट में गर्मी पैदा करना, व्याकुल करना, त्याग देना, झगड़ा बढ़ा देना, चुगलखोरी करना, नष्ट-भ्रष्ट करना.
  • मुहावरा--8.आग लगाय नै तमासौ देखणौ--झगड़ा पैदा करके अपना मनोरंजन करना या मौज लेना.
  • मुहावरा--9.आग लगाय नै पांणी लावण नै दौड़णौ--झगड़ा पैदा करके फिर उसे शांत करने की कोशिश करना।
2.ताप, जलन.
3.कामाग्नि। (रू.भे.अग्ग)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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