सं.पु.
सं.
1.किसी लेख या पुस्तक में किसी दूसरे लेख या पुस्तक के किसी अंश को ज्यों का त्यों रखना या दोहरा देना, अविकल रूप से नकल करना.
2.फँसे हुए को निकालना, त्रांण, उद्धार। वि.--उद्धार करने वाला।
- उदा.--खत्रियांण मांण महि उद्धरण एक छत्रि आलम कहै। गायत्रि मंत्र गहलोतगुर तिंहिं प्रताप सरणै रहै।--अज्ञात