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उधार  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.उद्धार
1.उद्धार, मुक्ति।
  • उदा.--अर पाताळ थे म्हारौ उधार कीयौ।--वेलि.टी.
2.ऋण, कर्ज। क्रि.प्र.--करणौ, चूकणौ, देणौ, लेणौ, होणौ।
  • कहावत--1.उधार घर री हार--उधार देना घर की हार है; उधार देना बुरा है.
  • कहावत--2.उधार दियो'र गिरायक (ग्राहक) गमायौ--उधार दिया और ग्राहक गँवाया, क्योंकि तगादे के डर से वह ग्राहक फिर उस दुकान की ओर नहीं जाता.
  • कहावत--3.उधार दीजै दुसमण कीजै--उधार दीजिये और दुश्मन कीजिये; उधार लेने वाला बराबर चुका नहीं सकता अतः उससे लड़ाई हो ही जाती है.
  • कहावत--4.उधार देवणौ लड़ाई मोल लेवणी है--देखो 'उधार दीजै दुसमण कीजै'.
  • कहावत--5.उधार पुधार घरै सिधार--उधार-पुधार माँगते हैं तो अपने घर जा; उधार नहीं देना चाहिए।
3.किसी की कुछ चीज का दूसरे के यहाँ केवल कुछ समय के लिए मंगनी के तौर पर व्यवहार में जाना। (रू.भे.उदार)
क्रि.प्र.--करणौ, होणौ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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