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उपंगी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.नसतरंग बजाने वाला।
  • उदा.--कळहंस जांणगर मोर निरत कर, पवन ताळधर ताळपत्र। आरि तंतिसर भमर उपंगी, तीवट उघट चकोर तत्र।--वेलि.
2.संगीत में एक प्रकार का तार वाद्य, इस वाद्य के नीचे तूंबे पर चमड़ा मंढ़ा होता है और चमड़े में से एक तार डांड पर आता है, डांड की खूंटी ढीली होती है जिसे मुट्ठी में पकड़ा जाता है और तार को कसा या ढीला किया जाता है। दूसरे हाथ से तार पर आघात करते हैं। उसमें स्वर और ताल दोनों का काम होता है। (रू.भे.अपंग, उपंग)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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