सं.पु.
लंबी गर्दन वाला एक ऊँचा पशु जो सवारी और बोझा लादने के काम में आता है। पर्याय.--अणियाळौ, आंखरातबर, उमदा, कंटकअसण करह, करहौ, करेलड़ौ, काछी, कुळनास गघ, गघराव, गय, गिड़ंग, जमाद, जमीकरवत, जाखोड़ौ, जूंग, टोड, तोड़, दरक, दाशेरक, दुरंतक, पांगळ, पाकेट, पींडाढाल, प्रचंड, वासंत, भुणकमळौ, भूणमत्थौ, मयंद, सढ्ढौ सळ, सांढ़ियौ।
- कहावत--1.ऊंच आरड़ताई पीलांणीजै है--ऊँट के दर्द से चिल्लाते हुए भी उस पर चारजामा कसा जाता है। जबरदस्ती काम कराना.
- कहावत--2.ऊंट किसी घड़ बैठै--देखें ऊँट किस करवट बैठता है? देखें आगे चल कर क्या नतीजा होता है या कैसी परिस्थिति खड़ी होती है.
- कहावत--3.ऊंट कूदै ही कोयनी, बोरौ पै'ली ही कूदण लाग ज्यावै--ऊँट कूदता नहीं, बोरे उसके पहले ही कूदने लगते हैं। सम्बन्धित व्यक्तियों की मौजूदगी में असंबंधित व्यक्तियों का पंचायती करना ठीक नहीं होता.
- कहावत--4.ऊंट खुड़ावै, गधौ डांभीजै--ऊँट खुड़ाता है, गधा दागा जाता है; अपराध कोई करे, फल कोई भोगे.
- कहावत--5.ऊंट खुड़ावै जद गधै रै डांभ देवै--ऊँट लँगड़ाता है तब गधे के दाग देते हैं; अपराध कोई करे दंड किसी को दिया जाय.
- कहावत--6.ऊंट चढ़ी गुड़खाय--ऊँट पर चढ़ी हुई गुड़ खाती है। सबको दिखाते हुए कोई काम करना.
- कहावत--7.ऊँट चढ़ी भीख मांगै--ऊँट पर चढ़ी हुई भीख माँगती है। पास में सम्पन्न वस्तुओं के होते हुए भी भीख मांगना। भीख मांगते हुए भी ठाट-बाट रखना.
- कहावत--8.ऊंट चढ्यै नै कुत्तौ खाय--ऊँट पर चढ़े हुए को कुत्ता खा जाता है। ऊँट पर चढ़े हुए व्यक्ति तक कुत्ते का पहुँचना असम्भव है अतः असंभव बात; भाग्य खोटा होने पर असम्भव बात भी हो जाती है.
- कहावत--9.ऊंट चढ्यै नै दौ दीसै--ऊँट पर चढ़े हुए को दो दिखाई देते हैं? थोड़ी सी उन्नति में कुछ का कुछ हो जाना.
- कहावत--10.ऊंट छोडै आकड़ौ बकरी छोडै कांकरौ--ऊँट केवल मदार वृक्ष को छोड़ता है, किन्तुबकरी सब कुछ खा सकती है केवल कंकरों को छोड़ कर। उस व्यक्ति के लिए जो किसी बात से परहेज न करता हो.
- कहावत--11.ऊंट तौ अरड़ावता हीज पलांणीजै (लादीजै)--मि.कहावत.नं.(1)
- कहावत--12.ऊंट नै गुळ-पांणी सूं कांई हुवै?--ऊँट को गुड़-पानी से क्या हो? अधिक खाने वाले के लिये.
- कहावत--13.ऊंट ने ऊठतां ही ढांण नहीं घातणौ--ऊँट को उठते ही तेज नहीं चलाना। किसी काम के आरंभ में ही अधिक तेजी नहीं दिखाना क्योंकि यह तेजी बराबर नहीं रह सकती और बाद में काम ढीला पड़ने लगता है.
- कहावत--14.ऊंट फिटकड़ी दियां ही अरड़ावै, गुड़ दियां ही अरड़ावै--ऊँट फिटकड़ी देते भी अरड़ाता है और गुड़ देते भी अरड़ाता है। दुःख और सुख दोनों ही में असन्तुष्ट रहने वाले के लिये.
- कहावत--15.ऊंट मरै जद लंका सांमै जोवै--ऊंट मरता है तब लंका (लंकियौ) की ओर देखता है क्योंकि वह उसकी मातृ-भूमि है.
- कहावत--16.ऊंट री खोड़ ऊंट नै इज बोवै--
- कहावत--17.ऊंट री खोड़ ऊंट भुगतै--ऊँट की कमी या अवगुण स्वयं ऊँट को ही भुगतना पड़ता है क्योंकि ऊँट के दोष आदि का कुप्रभाव अन्य पशु घोड़ा, बैल, भैंस आदि के दोष की भाँति ऊँट के खरीददार या मालिक पर नहीं होता। खुद का किया हुआ खुद को ही भुगतना पड़ता है.
- कहावत--18.ऊंट री नस आंटी व्है तौ सीधौ देखियौ ही कंई--
- कहावत--19.ऊंट रै ऊंट तेरी कुणसी कळ सीधी--ऊँट की सब कलें या अंग टेढ़े-बांके ही होते हैं; सब प्रकार के अवगुणी मनुष्य के लिये.
- कहावत--20.ऊंट री पीठ पर नहीं लदै सौ गळै में बंधै--जो ऊँट की पीठ पर नहीं लद सकता वह भार स्वयं सवार को उठाना पड़ता है। मातहत में कार्य करने वाले यदि कार्य नहीं करते तो स्वयं स्वामी को ही कार्य करना पड़ता है। ऊंट की पीठ पर लदने के बाद यदि कुछ शेष रह भी जाता है तो बेचारे के गले में ही बंधता है। गरीब को हर तरह से काम में लिया जाता है.
- कहावत--21.ऊंट रै गळवांणी सूं कांई हुवै--मि.कहावत नं.(12)
- कहावत--22.ऊंट रै पेट में जीरा रौ बघार--ऊँट रै पेट में जीरै रौ बघार--ऊंट के पेट में जीरे का बघार, बहुत खाने वाले को थोड़ी चीज देना.
- कहावत--23.ऊंट रौ पाद जमी रौ न आसमांन रौ--ऊंट का पाद न जमीन का न आसमान का; जो किसी के काम का न हो उसके लिये; निकम्मे आदमी के अधूरे काम के लिये.
- कहावत--24.ऊंट लदण सूं गयौ तौ कांई पादण सूं ही गयौ?--ऊंट लदने से गया तो क्या पादने से भी गया; पूर्ण अधिकार छिन गया तो क्या साधारण अधिकार भी न रह गया?
- कहावत--25.ऊँट लांबौ तौ पूंछ छोटी--ऊंट लम्बा पूँछ छोटी; सब बातें मनचाही नहीं होतीं, कुछ कुछ कमी रह गई.
- कहावत--26.ऊंटां रै कुण छपरा छाया हा?--ऊँटों के किसने छप्पर छाए थे अर्थात् वे तो खुले में ही रहते आये हैं; बिना वस्तु काम चलाने के लिये। (रू.भे.ऊँठ)