सं.पु.
सं.
1.हाथ में कलाई पर धारण करने का एक भूषण विशेष, कड़ा.
2.लोहे का एक कड़ा जिसे अकाली लोग पहनते हैं.
3.दूल्हे के दाहिने तथा वधू के बायें हाथ और पैर में धारण करने का सूत का रंगीन डोरा जिसमें कोड़ी, लाख, लोहे की कड़ी, मरोड़-फली व जायफल बँधे रहते हैं (रीति-रस्म)
5.छंदशास्त्र में चार मात्राओं का समूह, चौकल (पिं.प्र.)
6.डिंगल का वेलिया सांणोर गीत का एक भेद जिसके प्रथम द्वाले में 48 लघु 8 गुरु कुल 64 मात्राएं तथा शेष के द्वालों में 48 लघु 7 गुरु कुल 62 मात्राएं होती हैं (पिं.प्र.) वि.--कुटिल* (डिं.को.)