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कंकण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.हाथ में कलाई पर धारण करने का एक भूषण विशेष, कड़ा.
2.लोहे का एक कड़ा जिसे अकाली लोग पहनते हैं.
3.दूल्हे के दाहिने तथा वधू के बायें हाथ और पैर में धारण करने का सूत का रंगीन डोरा जिसमें कोड़ी, लाख, लोहे की कड़ी, मरोड़-फली व जायफल बँधे रहते हैं (रीति-रस्म)
4.एक प्रकार का षाडव राग.
5.छंदशास्त्र में चार मात्राओं का समूह, चौकल (पिं.प्र.)
6.डिंगल का वेलिया सांणोर गीत का एक भेद जिसके प्रथम द्वाले में 48 लघु 8 गुरु कुल 64 मात्राएं तथा शेष के द्वालों में 48 लघु 7 गुरु कुल 62 मात्राएं होती हैं (पिं.प्र.) वि.--कुटिल* (डिं.को.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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