सं.पु.
सं.
1.स्वर्ण, सोना (अ.मा.)
3.एक प्रकार का घोड़ा।--शा.हो.
4.छप्पय छंद का एक भेद जिसके अनुसार 21 गुरु और 110 लघु से 131 वर्ण या 152 मात्राएं होती हैं (र.ज.प्र.)
5.एक वर्णिक छंद जिसमें एक रगण एवं एक जगण के क्रम से 14 वर्ण होते हैं तथा अंत में लघु होता है (ल.पिं.)
6.वेलिया सांणौर नामक छंद का एक भेद विशेष जिसके प्रथम द्वाले में 44 लघु व 10 गुरु सहित 64 मात्राएं होती हैं तथा शेष द्वालों में 44 लघु 9 गुरु सहित कुल 62 मात्राएं होती हैं (पिं.प्र.) वि.--पीला, पीत* (डिं.को.)