सं.पु.
सं.कर्म
भाग्य, प्रारब्ध।
- मुहावरा--1.करम टेढ़ौ होणौ--भाग्य बुरा होना, बदकिस्मत होना.
- मुहावरा--2.करम ठोकणौ--भाग्य को दोषी ठहराना.
- मुहावरा--3.करम फूटणौ--भाग्यहीन होना, बुरे दिन आना.
- मुहावरा--4.करम उदै होणौ--भाग्य चेतना।
- कहावत--1.करम कारी नहीं लागण दै जद कांई हुवै?--भाग्य पैबंद नहीं लगने देता तब क्या हो सकता है? भाग्य साथ न दे तो क्या हो सकता है? भाग्य भलाई न होने दे तो प्रयत्न व्यर्थ है.
- कहावत--3.करम की ढोलकी बाजी--भाग्य विपरीत होने पर गोपनीय कार्य भी प्रकट हो जाता है.
- कहावत--4.करम छिपे न भभूत रमायां (लगायां)--राख रमाने पर भी (साधु हो जाने पर भी) करम नहीं छिपता। साधु हो जाने पर भी भाग्य पीछा नहीं छोड़ता। साधु हो जाने पर भी भले-बुरे काम करने की जो प्रकृति पड़ जाती है वह नहीं छिपती.
- कहावत--5.करम फूट नै कांकरा निकळिया--भाग्यहीन के सदा विफलता ही हाथ लगती है.
- कहावत--6.करम नै छांवळी तौ साथे री साथे है--मनुष्य के कर्म और छाया सदैव साथ रहती है। कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है, वे मिट नहीं सकते.
- कहावत--7.करम फूट नै चोडाळ हुय गया है--भाग्यहीन होना। बुरे दिन आना.मूर्खता का कार्य करने पर व्यंग्य.
- कहावत--8.करम फूटां नै कारी नीं लागे--हर एक चीज को सुधारा जा सकता है किन्तु प्रतिकूल भाग्य को अनुकूल नहीं बनाया जा सकता.
- कहावत--9.करम फूट्योड़ै नै भाग-फूट्योड़ौ सौ कोसां री अंवळाई खा'र मिळै--कर्म फूटे के पास भाग फूटा सौ कोस का चक्कर खाकर भी पहुँच जाता है। भाग्यहीन के पास भाग्यहीन अपने आप सहज में ही पहुँच जाता है। जैसे को तैसा सहज में ही मिल जाता है.
- कहावत--10.करम फूट्यौ रै केसवा, गूंदी रै लाग्या लेसवा--गूंदी जैसे छोटे फल वाले पेड़ पर भी जब लिसोड़े लग जाते हैं तब कैसे काम चल सकता है। थोड़ी हैसियत पर बड़ा आडम्बर नहीं चल सकता।
- कहावत--11.करम में कांकरा लिखियोड़ा नै हीरा चावै--भाग्यहीन व्यक्ति का अच्छी वस्तु की आशा करना व्यर्थ है.12 करम में तौ कागला रौ पग (पंजौ) है--भाग्य तो विपरीत है, अतः कैसे अच्छी वस्तु की प्राप्ति की आशा की जा सकती है.
- कहावत--13.करम रा कोढ़ कठै जाय--दुष्कर्म के फलस्वरूप प्राप्त होने वाली यातना भुगतनी ही पड़ती है.
- कहावत--14.करम रेख ना मिटै करौ कोई लाखूं चतराई--भाग्य की रेखा नहीं मिटती, चाहे कोई लाखों चतुराई करले। कितनी ही चतुराई हो भाग्य में जो लिखा है सो तो होता ही है।
- कहावत--15.करम ही रांड्यौ तौ कईं करै बापड़ौ पांड्यौ--किसी व्यक्ति का भाग्य ही ठीक न हो तो ज्योतिषी आदि क्या कर सकते हैं.
- कहावत--16.काळा करम रा धोळा धरम रा है--जो कुछ अच्छी वस्तु की प्राप्ति है वह धर्म के कारण है तथा बुरा फल बुरे भाग्य के कारण है.
- कहावत--17.गाबां फाटां कारी लागे, करम फूटां नै कारी नीं लागै--फटे हुए कपड़े के पैबंद लगाये जा सकते हैं किन्तु विपरीत भाग्य को अनुकूल नहीं बनाया जा सकता.
- कहावत--18.जाट पढ़ियोड़ौ है'क हाते करम फोड़ै जैड़ौ है--अधूरी विद्या भी कभी-कभी हानि या बुरे भाग्य का कारण बन जाती है.
- कहावत--19.फूटा करम फकीर रा भरी चिलम गुड़ जाय--भाग्य विपरीत होने पर भरी हुई चिलम भी उलट जाती है। बुरे भाग्य के कारण अच्छी वस्तु भी बुरी हो जाती है.
- कहावत--20.बिगड़िये कांम नै कारी लागै पण फूटोड़ै करम नै नीं लागै--बिगड़ा हुआ कार्य सुधारा जा सकता है किन्तु विपरीत भाग्य को अनुकूल नहीं बनाया जा सकता.
- कहावत--21.रूप रोवै करम खाय, रूप री धणियांणी पांणी नै जाय--रूपवती स्त्री होती है किन्तु भाग्यवती बैठी-बैठी खाती है। रूपवान से भाग्यवान होना अच्छा है।
2.दुष्कर्म, पाप।
- उदा.--संगत कीजै साध की, हठ कर कीजै मोह। करमकटै 'काळू' कहै, तिरै काठ संग लोह।--काळू
3.संचित कर्म।
- उदा.--चेतन वंध्या मन सूं मन करमे वंध्या।--केसोदास गाडण
6.ललाट, माथा।
- मुहावरा--करम खुलणौ--प्रारब्ध खुलना, सिर टूटना।
- कहावत--करम में खाज हालै है--सजा के योग्य कार्य करने पर।
10.वह शब्द जिसके वाच्य पर क्रिया का फल गिरे। सं.स्त्री.--लक्ष्मी (अ.मा., नां.मा.)