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कीड़ी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.कीटी
1.चिउँटी, चींटी, पीपिलिका।
  • उदा.--जवन म्रतक तन क्रपण धन, अनकण कीड़ी आंण। धरती में ऊंडौ धरै, जांण भलौ निज जांण।--बां.दा.
  • मुहावरा--कीड़ियां लागणी--जी उकताना, शरारत करना, शरारत करने की इच्छा होना, त्वरा करना।
  • कहावत--1.कीड़ी कैवै क मां गुड़ री भेली ल्यावूं, मा कैवै क बेटी थारी कमर ही कैवै है नी--अपनी शक्ति के बाहर कोई कार्य करने के प्रयत्न पर.
  • कहावत--2.कीड़ी नै कण, हाथी नै मण--ईश्वर सबको निर्वाह के योग्य भोजन देता है.
  • कहावत--3.कीड़ी नै पंसेरी वावणी--देखो कहावत 4.
  • कहावत--4.कीड़ी नै पंसेरी री मारणी--कमजोर पर अधिक बल प्रयोग अथवा व्यंग्य कसना अच्छा नहीं.
  • कहावत--5.कीड़ी नै म्‌त रौ रेलौ ही भारी व्है है--कमजोर एवं सामर्थ्यहीन पुरुष को छोटा सा एवं साधारण संकट भी सहन करना कठिन होता है.
  • कहावत--6.कीड़ी संचै तीतर खाय, पापी कौ धन परळै जाय--चींटियों का इकट्ठा किया हुआ तीतर खाते हैं और पापी का धन दूसरे ले जाते हैं; पाप का कमाया हुआ धन पापी के काम नहीं आता; पाप का धन बुरे कामों में नष्ट होता है.
  • कहावत--7.हाथी वेग चढ़ै नै कीड़ी वेग ऊतरै--बुखार के लिए प्रयुक्त जो प्रायः तेजी से चढ़ता है किन्तु चींटी की चाल के समान धीरे-धीरे उतरता है।
2.ज्वार के पौधों में लगने वाला एक कीड़ा।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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