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कुंज  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.वह स्थान जिसके चारों ओर घनी लताएं छाई हों। वृक्ष-वीथि। पर्याय.--कुंजभवन, तरकुंज, लुकवेस, विजुळ, विंदुळरथी, विटपतटी। [सं.]
2.हाथी का दाँत.
3.नौ ग्रहों में से एक, मंगल (नां.मा.)
4.कमल (अ.मा.)
5.क्रौंच पक्षी।
  • उदा.--कड़ियां सुंवै पांणी मैं पैठां पगां रा नख झाखै छै, दूध रै भौळावै विलाव वासीजै छै। ऊपर कुंजां सारसां गहकनै रही चै।--रा.सा.सं.। लाल, रक्त वर्ण*।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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