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केसर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.फूलों के अन्दर बीचोबीच बाल की तरह पतले-पतले सींके या सूत.[सं.]
2.ठंडे देशों में होने वाला एक पौधा जिसका केसर स्थायी सुगंध के लिए प्रसिद्ध है, जाफरान। पर्याय.--कसमीरज, काळेक, काळेयक, कुंकम, कुंकुम, कुंकुमकाय, कूंकूं, केसर, गुड़वरण, गुड़वरणी, चंदण, दीपक, देववलभा, देववल्लभ, धीर, पिसुण, पीत, बाहलीक, मंगळकरण, मंगळकरणी, रकत, रगत, लोहत, लोहित, वन्हिसिख, वाहलीकजा, संकज, संकोच, सुगन्ध।
3.घोड़े, सिंह आदि जानवरों के गर्दन पर के बाल, अयाल.
4.नाग केसर.
5.बकुल.
6.मौलश्री.[सं.]
7.स्वर्ग.
8.देववृक्ष (अ.मा.) वि.--लाल, रक्तवर्ण* (डिं.को.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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