HyperLink
वांछित शब्द लिख कर सर्च बटन क्लिक करें
 

कोटि  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.
1.धनुष का सिरा.
2.किसी अस्त्र की नोंक व धार.
3.वर्ग, श्रेणी, दरजा.
4.उत्कृष्टता, उत्तमता.
5.समूह, जत्था। सं.पु.--
6.अग्र भाग।
  • उदा.--1..अर दैव रै परतंत्र प्रतापसिंघ अरिसिंघ दोही गयंदां रै बीच आया।
  • उदा.--2..एक तरफ तट दुरगम, एक तरफ द्रह अगाध, देखि दोही वीरां मूंछां रा अग्र भुंहारां री कोटि लिया अर अस्वमेध सत्र रा फळ देणहार दोही गजां रै सांम्है पैंड दिया।--वं.भा.
7.जलाशय का वह स्थान जहाँ लोग जल-पात्र भरते हैं, घाट।
  • उदा.--वपु नील मझि इम बखांण, जगमगत घटा मझ छटा जांण। त्रिय कोटि कोटि इम सरुज तीर, नग झटित भरत घट हेम नीर।--सू.प्र.
  • उदा.--नमौ लख कंद्रप कोटि लावन्न, नमौ हरि मारण रूप मदन्न।--ह.र.
वि.
करोड़।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

Project | About Us | Contact Us | Feedback | Donate | संक्षेपाक्षर सूची