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कोयल  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.कोकिल
काले रंग की एक चिड़िया जो कौवे से कुछ छोटी होती है और मैदानों में वसंत ऋतु के आरंभ से वर्षा ऋतु के अंत तक रहती है। मीठी बोली के लिए यह संसार में प्रसिद्ध है। कोकिला। पर्याय.--कोकल, दुतसुर, परभ्रत, पिक, भरव्रत, रगत द्रग।
  • कहावत--1.कागा किसका लेत है, कोयल किसकूं देत। मीठी वांणी सुणाय कै, जग अपणा कर लेत--कौआ किसी का क्या लेता है और कोयल किसी को क्या देती है, फिर भी लोग कोयल से खुश रहते हैं; मीठी बोली से सब खुश रहते हैं.
  • कहावत--2.कोयल कागलौ एक रंग, बोल्यां खबर पड़ै--कोयल और कौवे का रंग एक ही होता है, बोलने से उनका भेद प्रकट होता है। (अल्पा.'कोयलड़ी')
2.सफेद और नीले फूलों वाली एक लता जिसकी पत्तियां गुलाब की पत्तियों से मिलती-जुलती होती हैं; अपराजिता (रा.सा.सं.)
2.एक प्रकार का राजस्थानी लोक गीत जिसे लड़की को ससुराल के लिए विदा करते समय गाया करते हैं.
4.लड़कियों द्वारा रात्रि में गाया जाने वाला एक लोग गीत।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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