सं.पु.
फा.
1.पर्वत, पहाड़। [सं.कोशपान]
2.किसी प्रकार के अपराध या दोष के कलंक की मुक्ति के हेतु देव विशेष का नाम लेकर पीया जाने वाला जल। [सं.क्रोध]
3.क्रोध, गुस्सा।
- उदा.--बिमोह मोह-मोह में, विद्रोह द्रोहिपें बढ़ै। क्रतांत भांत कोह में, कु कोह कोहिकौ कढ़ै।--ऊ.का.
4.धूलि, रज।
- उदा.--रांण दिस हालिया ठांण आरांण रुख, कोह असमांण चढ़ भांण-ढंका।--र.रू.
[सं.कुहू] देखो 'कुह' (3, 4) (रू.भे.)