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कोह  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
फा.
1.पर्वत, पहाड़। [सं.कोशपान]
2.किसी प्रकार के अपराध या दोष के कलंक की मुक्ति के हेतु देव विशेष का नाम लेकर पीया जाने वाला जल। [सं.क्रोध]
3.क्रोध, गुस्सा।
  • उदा.--बिमोह मोह-मोह में, विद्रोह द्रोहिपें बढ़ै। क्रतांत भांत कोह में, कु कोह कोहिकौ कढ़ै।--ऊ.का.
4.धूलि, रज।
  • उदा.--रांण दिस हालिया ठांण आरांण रुख, कोह असमांण चढ़ भांण-ढंका।--र.रू.
सं.स्त्री.[रा.]
[सं.कुहू] देखो 'कुह' (3, 4) (रू.भे.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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