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खर     (स्त्रीलिंग--खरांणी)  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.गधा (देखो 'गद्धौ')
  • कहावत--खर घघ्घू मूरख पसू, सदा सुखी प्रिथिराज--गधा, उल्लू, पशु और मूर्ख सदा सुखी रहते हैं। मूर्ख व्यक्ति को प्रपंचों में नहीं पड़ना पड़ता और न लोग घेरे रहते हैं। उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं होती। मूर्ख व्यक्ति के लिये।
2.बगला.
3.कौआ.
4.रावण का भाई एक राक्षस (रांमकथा)
5.तृण, तिनका, घास.
6.गर्मी, उष्णता (ह.नां.)
7.साठ संवत्सरों में से 25वाँ संवत्‌.
8.छप्पय छंद का बीसवाँ भेद जिसमें 51 गुरु और 50 लघु से 101 वर्ण या 152 मात्राएं होती हैं। (र.ज.प्र.) वि.--
1.तेज, तीक्ष्ण.
2.कड़ा, कठोर (डिं.को.)
3.घना, मोटा.
4.हानिकर.
5.बैंगनी रंग का.
6.धूम्र वर्ण* (डिं.को.)
7.उष्ण, गर्म (डिं.को.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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