सं.स्त्री.
सं.कील
1.लोहे या काष्ट की मेख, कील, खूटी। क्रि.प्र.--उखेड़णी, गाडणी, ठोकणी, लगावणी।
2.शरीर पर होने वाला कठोर और नुकीला फोड़ा, फुंसी.
3.रहँट के उपकरण (ऊबड़ियौ) को खड़ा रखने हेतु आजू-बाजू में दो काष्ट के डंडे लगाए जाते हैं। उनके सहारे के लिए खड़ा किया जाने वाला पत्थर या लकड़ी का स्तंभ.
4.चक्की के दो पाटों के बीच की विशेष बनावट की कीली जिसके आधार पर ऊपर का पाट घूमता है.