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खुर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
1.चौपायों के पैर की कड़ी टाप जो बीच में से फटी होती है। गाय, भैंस आदि सींग वाले चौपायों के पैर का निचला छोर जो खड़े होने पर पृथ्वी पर पड़ता है। सफ। (अल्पा.खुरड़ौ)
2.नख नामक गंध द्रव्य। [रा.]
3.पैर, चरण।
  • उदा.--मन जांणै चढूं हाथियां माथै, खुर रगड़ंतां जनम खवै। नर री चीती बात हुवै नह, हर री चीती बात हुवै।--ओपौ आढ़ौ
4.तीर, बाण (अ.मा., डिं.नां.मा.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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