सं.पु.
सं.
वहसाधारण मनोरंजक कृत्य जो स्रयं की इच्छा से, बिना किसी विवशता के, केवल चित्त की उमंग से दिल बहलाने या व्यायाम के लिए किया जाय। इसमें प्रायः हार-जीत भी होती है। क्रि.प्र.--करणौ, खेलणौ, जीतणौ, मांडणौ, बिखरणौ, हारणौ।
- मुहावरा--खेल बिगड़णौ--खेल खराब होना, रंग में भंग होना।
- कहावत--1.खेल खतम पैसा हजम--खेल समाप्त हुआ अतः खेल देखने के लिए जो पैसा दिया वह हजम। कार्य-समाप्ति पर।
- कहावत--2.खेल खिलाड़्यां रा अर घोड़ा असवारां रा--खेल खिलाड़ियों का और घोड़ा सवार का। साहसी व अनुभवी पुरुष को ही सफलता मिलती है.
- कहावत--3.मांझी मरिया नै खेल वीखरिया--टोली नायक के मरते ही खेल की समाप्ति हो जाती है। (मि.--खाळू पडियौ नै खेल वीखरियौ)
2.बहुत हल्का या तुच्छ कार्य।
- कहावत--डावै हाथ रौ खेल है--बाँये हाथ का खेल है; बहुत तुच्छ या साधारण कार्य के लिये।
3.काम-क्रीड़ा, केलि, विषय-विहार।
- उदा.--खारी लागै खेल, बाळां नै बूढ़ां तणी। मनां न होवै मेळ, जोड़ी विना रे जेठवा।
4.किसी प्रकार का अभिनय, तमाशा।
- मुहावरा--खेल करणौ--किसी काम को अनावश्यक समझ कर हँसी में उड़ाना, कौतुक करना, तमाशा करना, मजाक या दिल्लगी करना.
5.कोई अद्भुत कार्य, विचित्र लीला।