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खड़  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.
1.घास।
  • उदा.--ते खड़ ऊभा सूकसी, नह चरसी हिरणांह।--बां.दा.
  • कहावत--1.खड़ कटाऔ चावै गेलै चलाऔ--चाहे घास कटाओ चाहे रास्ते चलाओ; उतने ही समय में चाहे कुछ भी कार्य करा लो।
  • कहावत--2.झड़ जठैई खड़--जहाँ मंद-मंद हल्की वर्षा होगी वहीं अधिक घास होगी; मंद-मंद हल्की वर्षा की फुहारों की प्रशंसा।
2.श्योनक, लोध, सोनापाठी वृक्ष.
3.एक ऋषि का नाम।
4.वन, जंगल।
  • उदा.--धेनूं चरतोड़ी धोरां खड़ धाती, ऊखां झरतोड़ी लोरां झड़ आती।--ऊ.का.
5.चलाने या हाँकने की क्रिया या भाव.
6.चाल में चलने की गति।
सं.पु.--
सं.स्त्री.[रा.]


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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