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गय  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.गगन
1.आकाश, गगन.[सं.गज]
2.हाथी।
  • उदा.--1..इण विध नबाब गय चढ़ प्रयांण। गज घड़ा अग्र चालै घुमांण।--शि.सु.रू.
  • उदा.--2..राजति अति एण पदाति कुंज रथ, हंस माळ बंधि लास हय। ढालि खजूरि पूठि ढळकावै, गिरवर सिणगारिया गय।--वेलि.
3.ऊँट (अ.मा.)
  • उदा.--लांबी कांब चटक्कड़ा, गय लंबावइ जाळ। ढोलउ अजे न बाहुड़इ, प्रीतम मो मन साल।--ढो.मा.
4.गति, चाल।
  • उदा.--खंजर नेत विसाळ गय, चाही लागइ चक्ख। एकण साटइ मारुवी, देह ऐराकी लख्ख।--ढो.मा.
[रा.]
सं.स्त्री.[सं.गति]


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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