सं.पु.
सं.गरुड
1.पक्षियों का राजा माना जाने वाला एक पक्षी। वि.वि.--एक पौराणिक पक्षी जिसका आधा शरीर मनुष्य का और आधा पक्षी का माना जाता है। यह विष्णु का वाहन है। बालखिल्यों की तपस्या के फलस्वरूप पुत्रेष्ठि यज्ञ के पश्चात् कश्यप और वनिता से इसकी उत्पत्ति हुई। कद्रू और वनिता की शत्रुता के कारण कद्रूपुत्र सर्पों का यह बड़ा शत्रु है। इसका मुख श्वेत, पंख लाल एवं शरीर सुनहला माना गया है। संपाति इसका पुत्र था। इसकी पत्नी का नाम विनायका है। रामचरित मानस के चार वक्ता और श्रोता वर्ग में से काकभुशुंड और गरुड़ भी एक वर्ग हैं। पर्याय.--अणभंग, अणसंख, अम्रतचरण, अरुणानुज, अरुणावरज, अहिगाह, अहिभुक, अहिरिप, इंद्रजीत, उनतीनाह, कसपतनु, कस्यपसुतन, कस्यपात्मज, कासपी, कासीपी, खग, खगपत, खगराज, खगेस, खगेसर, गिरराज, ग्रीधळ, चपळवास, जतीवाह, तारक, तारक्ष, तारख, दिढ़वंत, दुजपति, धखपंख, पंखपत, पंखी, पंखीपत, पत्रीराज, पूतात्मा, प्रगड, बळवंत, बिखहा, बिनतासुतन, बिहंगेस, बैनतेय, भुजंगमचर, भुजावेद, भुयंगचर, मंत्रपूत, मनवाह, यंद्रजीत, राजपत्री, लघुअसण, वजरतुंड, वनितासुत, वायुविरोधी, विखहर, वेनतनय, व्याळारी, सकतीधरण, सक्तीधर, सजव, सालमळी, सुतपावाहन, सुधाचरण, सुपरण, सुप्रसण, सेस, सोव्रनतन, हरिबाह, हरिवाहण।
रू.भे.
गरड़, गरुड़ि, गरुड़ू, गुरड़।
यौ.
गरुड़केतु, गरुड़गांमी, गरुड़धज, गरुड़पक्ष, गरुड़पास, गरुड़पुरांण, गरुड़वाह, गरुड़वेग।
2.उकाब पक्षी जो गिद्ध की तरह का और बहुत बलवान होता है.
3.सेना की एक प्रकार की व्यूह-रचना जिसमें अगला भाग नौकदार, मध्य का भाग विस्तृत और पिछला भाग पतला होता है।
4.बीस प्रकार के प्रासादों में से एक जिसमें बीच का भाग चौड़ा तथा अगला और पीछे का भाग नुकीला होता है.
6.छप्पय छंद का 55 वां भेद जिसमें 16 गुरु 120 लघु से 136 वर्ण या 152 मात्राएं होती हैं (र.ज.प्र.)
7.देवालय में पूजा या आरती के समय हाथ में लटका कर बजाया जाने वाला टिंकोरा जिसके हत्थे पर प्रायः गरुड़ की मूर्ति होती है।