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गाडर
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
भेड़।
उदा.--
पहिरण-ओढ़ण कंबळा, साठै पुरिसे नीर। आपण लोक उभांखरा,
गाडर
छाळी खीर।--ढो.मा.
कहावत--
1.गाडर आंणी ऊंन नै ऊबी चरै कपास--भेड़ को ऊन के लिये लाया गया परन्तु वह चरती-चरती कपास को चर गई। एक वस्तु के लाभ के बदले दूसरी वस्तु की हानि सहन करना। लाभ के लिये लाई गई वस्तु से हानि होने पर.
कहावत--
2.गाडर रै माथै ऊंन कुण छोडै--भेड़ की ऊन कौन छोड़ता है? गरीबों से हर कोई लाभ उठाता है।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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