सं.पु.
सं.
1.किसी पदार्थ आदि में पाई जाने वाली वह विशेषता जिससे वह वस्तु या पदार्थ पहिचाना या जाना जाता है। वस्तु या पदार्थ के साथ लगा हुआ भाव या धर्म। क्रि.प्र.--आणौ, आवणौ, जांणणौ।
3.कोई कला या विद्या। क्रि.प्र.--जांणणौ, सीखाणौ, सीखणौ।
4.असर, प्रभाव। क्रि.प्र.--करणौ, देखणौ, पहुँचाणौ, होणौ।
5.अच्छा स्वभाव, शील, सद्वृत्ति।
- उदा.--आडा डूंगर बन घणा, आडा घणां पळास। सो साजन किम बीसरइ, बहुत गुण तणा निवास।--ढो.मा.
- कहावत--1.गुण नौ तौ वन भलौ, को गुण नौ मनख खोटौ--सद्गुण का तो वन भी भला किन्तु दुर्गुणी मनुष्य बुरा.
- कहावत--2.गुण लारै पूजा--गुण से ही मनुष्य की पूजा होती है।
यौ.
गुण-अतीत, गुणआगार, गुणग्राहक, गुणग्राही, गुणचोर, गुणवंत, गुणवांन, गुणवाचक।
6.विशेषता, खासियत, लक्षण.
7.एहसान।
- मुहावरा--गुण मांनणौ--कृतज्ञ होना।
8.तीन की संख्या* (डिं.को.)
9.सांख्य के अनुसार सत्व, रज और तम--तीन गुण.
10.रस्सी, डोर, तागा।
- उदा.--कुमकुमै भंजण करि धोत वसत धरि, चिहुरै जळ लागौ चुवण। छीणै जांणि छछोहा छूटा, गुण मोती मखतूळ गुण।--वेलि.
11.धनुष की प्रत्यञ्चा।
- उदा.--कप्पड़ जीण कमांण गुण, भीजइ सब हथियार।--ढो.मा.
12.यश, कीर्ति।
- उदा.--1..मन दुख दाधा डौल मत, साधा जग तज साव। मांनव भव भीता मिटण, गुण सीतावर गाव।--र.ज.प्र.
- उदा.--2..तेरौ जलम-जलम गुण गास्यूं, सूवा म्हारौ भंवर दिखा दे रे।--लो.गी.
- मुहावरा--गुण गावणौ--यश गाना, प्रशंसा करना।
13.डिंगल साहित्य का गीत या छंद।
- उदा.--सुज प्रहास सांणोर रै, दस मत अरध सिवाय। मेल दोय पूरब उतर, चोटियाळ गुण चाय।--र.ज.प्र.
15.काव्य, कविता।
- उदा.--1..चाहुवांण सोभौ हीमालावत मुगळ प्रेम गाय मारी तिण ऊपर मारियौ तिण साख रौ गुण--छायल फूल विछाय वीसमतौ वरजांगदै, गैमर गोरी राय तिण आमास अड़ाविया।--नैणसी
- उदा.--2..कवि वेदव्यास बलमीक कवि, करि अस्तुति वंदण कियौ। सूरज प्रकास सूरज जिसौ, 'अभमल' गुण आरंभियौ।--सू.प्र.
सं.स्त्री.
दासी, सेविका (अवधांन माळा)वि.--