सं.पु.
फा.
1.भेड़ या बकरे के चमड़े से मढ़ा हुआ लकड़ी का बना गोल वाद्य जो फाल्गुन मास में ग्रामीण लोगों द्वारा बजाया जाता है। अल्पा.-चंगड़ी, चंगड़ौ। मह.--चंगड़।
- उदा.--वजि भ्रदंग चंग रंग उपंग वारंग। अनंग छबि चंग उमंग अंग-अंग। --सू.प्र.
सं.चं=चंद्रमा
2.पतंग, गुड्डी।
- उदा.--उड्डंत चंग मधि आसमांण। वरजांण अमर सोभित बिमांण।--सू.प्र.
रा.
4.घोड़े की एक जाति या इस जाति का घोड़ा (शा.हो.)
6.सितार का चढ़ा हुआ सुर (संगीत)
8.स्वस्थ एवं तंदुरुस्त व्यक्ति,
9.राजस्थानी में प्रयुक्त होने वाला एक (गीत) छंद जिसके प्रथम चरण में 16 मात्राएं, द्वितीय चरण में 11 मात्राएं तथा तृतीय व चतुर्थ चरण में प्रथम छ: भगण एवं अंत में एक गुरु लघु होते हैं। वि.--मोटाताजा, हृष्ट-पुष्ट।
- उदा.--1..पांणी पंथऊ पवंग, खंग्ग चंगऊ खुरसांणी। विग्या नगरी वस्त्र एक, विण सुर सिरवांणी।--ढो.मा.
- उदा.--2..किघौ म्रिग जुत्थन पै म्रिगराज, किधौ लखि चंग कुलंगनि बाज।--ला.रा.