सं.पु.
सं.चंद्र
1.देखो 'चंद्र' (रू.भे.) (ना.डिं.को.)
2.नाक का बायां छिद्र (योग)
3.पृथ्वीराज चौहान के दरबार का एक प्रसिद्ध कवि
4.चंद्रक रागिनी (संगीत), धु्रपद का एक भेद।
- उदा.--आंगणि जळ तिरफ उरप अलि पिअति, मरुत चक्र करि लियत मरू। रांमसरी खुमरी लागी रह, धूया माठा चंद धरू।--वेलि.
5.डिंगल का वेलिया सांणोर छंद का भेद विशेष जिसके प्रथम द्वाले में 32 लघु, 16 गुरु, कुल 64 मात्राएं हों तथा इसी क्रम से अन्य द्वालों में 32 लघु 15 गुरु कुल 62 मात्राएं हों (पिं.प्र.)
6.राजा हरिश्चंद्र (रू.भे.)
- उदा.--सतव्रत सुत हरिचंद सत जिहाज। रोहितास चंद सुत महाराज।--सू.प्र.
7.देखो 'चंदौळ' (रू.भे.)
- उदा.--डाक तबल मुरसलां, हाक इतमांम जसोलां। चंद गोळ बाजुवां, हुवै रंगराग हरौळां।--सू.प्र.