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चणण  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.जोश का भय आदि के कारण रोमांचित होने का भाव।
  • उदा.--चणण रोम चाचर धरण धाक धर थरर चख, खंभ बड़ड़ कड़ड़ दसण खिजायौ।--ब्रह्मदास दादूपंथी
2.धधकते हुए अंगारों को पानी में डालने से अथवा उन पर पानी डालने से होने वाली छम्म छम्म की ध्वनि।
3.तीरों अथवा बंदूकों की गोलियों की बौछार की ध्वनि।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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