सं.स्त्री.
1.किसी वस्तु के उपभोग का चसका।
- उदा.--1..निज थाट खोयफीटा निलज, साट न बुझै सार री। आठबाठ भागे अकल, चाट लगे विभचार री।--ऊ.का.
- उदा.--2..अजहूं न आयौ कंवर नंद कौ, प्यारी लागी चाट। छांड गयौ मझधार सांवरौ, बिना अकल रौ जाट।--मीरां
2.प्रबल इच्छा, कड़ी चाह। क्रि.प्र.--लागणी, होणी।
4.मिर्च-मसाला व खटाई आदि डाल कर बनाई हुई तीक्ष्ण या चरपरे स्वाद की वस्तु।
क्रि.प्र.--पड़णी, लगाणी, लागणी, होणी।