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चाव  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
1.चाह, रुचि।
  • उदा.--टुक बीच टोडा बीच आई, आई लैरिया री पोट, राज लैर्‌यौ लेद्यौ जी, लैर्‌यौ तौ लेद्यौ गोरी का सायबा जी, कांई थारी धण ने लैरिया रौ चाव, राज लैर्‌यौ लाद्यौजी।--लो.गी.
2.इच्छा, अभिलाषा।
  • उदा.--भवनौ अमराव दया मन भारी, दाब लखाव किणीक दियौ। दिल भूपत चाव लगौ खग देखण, काढ़त बीज सळाव कियौ। भक्तमतळ।
  • मुहावरा--चाव निकाळणौ--इच्छा पूरी करना।
3.उत्साह, उमंग, जोश।
  • उदा.--1..ताव अलाजां तरस सरस रण चाव सलाजां। बणै न राजा बहिर गहिर तोपां घण गाजां।--वं.भा.
  • उदा.--2..झरहरियौ आभ नकूं मांडे झड़, विखमां जग परहरियौ वाव। जो गुणंतरौ थरहरियौ जग में, चाळक न परहरियौ चाव।--लाधा सोलंकी रौ गीत
4.उत्सव।
  • उदा.--महिले दीपक थिर जगे, दीवाळी रौ चाव।--कुंवरसी सांखला री वारता
5.आनंद, खुशी, प्रमोद, हर्ष। भारवै सहियां भाळ लियां क्रिस भाव नै। चित पिय कोमळ ताय बधावै चाव नै।--बां.दा.
6.स्वभाव (अ.मा.)
7.मान, प्रतिष्ठा, आदर।
8.दान।
  • उदा.--मांडण जिम मोर पिता सिर मांणक, चूंडा हरौ समापै चाव। लूणकरण चीतोड़ लील-वत, रांण तणी घर वूठौ राव।--राव लूणकरण रौ गीत


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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