सं.स्त्री.
सं.
1.किसी प्राप्त दुख या दुख की आशंका से उत्पन्न होने वाली भावना, सोच, फिक्र।
- उदा.--कहियौ सुणै वीर कुदरती। मेट जती चिंता महपती।--सू.प्र.
- मुहावरा--चिंता लागणी--किसी बात का हर समय फिक्र रहना।
3.रस विषय में करुणा रस का व्यभिचारी भाव (साहित्य)