सं.स्त्री.
फा.
1.काठ या लोहे के डंडे पर रूई या वस्त्र आदि लपेट कर घास तेल या तिल के तेल से जलाई जाने वाली मशाल।
2.दीपक।
- उदा.--जामें कसब जड़ाव नग, मरदां कळा अनूप। जोति चिरागां जगमगै, हेक हुवंदा रूप।--गु.रू.बं.
- मुहावरा--1.चिराग गुल होणी--रौनक मिटना, चिराग बुझना, कुल का समाप्त हो जाना।
- मुहावरा--2.चिराग ठंडी करणी--किसी कुल का समाप्त कर देना, चिराग बुझा देना।
- मुहावरा--3.चिराग नीचै इंधारौ--किसी सम्मानित व्यक्ति द्वारा ही बुराई होना, विरुद्ध बात होना।