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चिराग  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
फा.
1.काठ या लोहे के डंडे पर रूई या वस्त्र आदि लपेट कर घास तेल या तिल के तेल से जलाई जाने वाली मशाल।
2.दीपक।
  • उदा.--जामें कसब जड़ाव नग, मरदां कळा अनूप। जोति चिरागां जगमगै, हेक हुवंदा रूप।--गु.रू.बं.
  • मुहावरा--1.चिराग गुल होणी--रौनक मिटना, चिराग बुझना, कुल का समाप्त हो जाना।
  • मुहावरा--2.चिराग ठंडी करणी--किसी कुल का समाप्त कर देना, चिराग बुझा देना।
  • मुहावरा--3.चिराग नीचै इंधारौ--किसी सम्मानित व्यक्ति द्वारा ही बुराई होना, विरुद्ध बात होना।
रू.भे.
चिराग।
यौ.
चिराग-बत्ती।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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