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चूड़ी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.परिधि मात्र का वह मंडलाकार पदार्थ जिसके मध्य का स्थान खाली हो।
2.किसी मशीन के पुर्जे या पेच के आसपास के घेरे की लकीरें जो कसने या इधर-उधर न हिलने देने के लिये होती हैं।
3.ग्रामोफोन पर बजाया जाने वाला रिकार्ड।
यौ.
चूड़ीबाजौ।
4.स्त्रियों द्वारा हाथों में पहनने का एक वृत्ताकार गहना जो कांच, लाख, चांदी या सोने का बनता है।
  • उदा.--1..ढोलउ चाल्यउ हे सखी, वाज्या विरह निसांण। हाथे चूड़ी खिस पड़ी, ढीला हुआ संधाण।--ढो.मा.
  • उदा.--2..कोई वीर स्त्री भागळ पती नै कहै छै--हे कंथ! आप भलां भागनै जीवता घरे आया, अबै म्हारौ वेस धारण करावौ, अबै म्हनै आं चूड़ियां सूं लाज आवै छै।--वीर सतसई की टीका
  • मुहावरा--1.चूड़ियां तोड़णी--अपने शौहर के मरने पर स्त्री का अपनी चूड़ियां तोड़ना।
  • मुहावरा--2.चूड़ियां पै'रणी--स्त्री बनना, कायर बनना।
  • मुहावरा--3.चूड़ियां बदरणी--चूड़ियों का टूटना।
  • मुहावरा--4.चूड़ियां बदारणी--चूड़ियों को तोड़कर हाथों से अलग करना। (चूंकि चूड़ियां तोड़ना अशुभ माना जाता है, अत: 'चूड़ियाँ बदारणी' का प्रयोग करते हैं।)
5.किसी तंग व लंबी मोहरी वाले पाजामा के मोहरी के अंत में डाली जाने वाली शिकनें या घेरे।
6.वह बकरी जिसके पैर सफेद व चूड़ी के आकार के हों।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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