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चोप
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.सेवा।
उदा.--
चोप
अरज हरि चरण
चोप
फिर रे परदछण।--र.ज.प्र.
2.प्रार्थना, विनती।
उदा.--
चोप करे कर जोड़ जनम सरजत आगळ जण।--र.ज.प्र.
3.ध्यान।
उदा.--
चोप
करे चित बीच नांम सिर अगर सु नरहर।--र.ज.प्र.
4.लगन।
उदा.--
चंनण घस जुत
चोप
कमल त्यूं तिलक
चोप
कर।--र.ज.प्र.
5.भक्ति।
6.श्रद्धा।
उदा.--
अत
चोप
भजन सी-वर उचर, ध्यांन हृदय जुत
चोप
धर।--र.ज.प्र.
7.कृपा, दया, अनुकम्पा।
उदा.--
कवि चहै
चोप
रघुराज कौ, कर-कर
चोप
स भजन कर।--र.ज.प्र.
क्रि.वि.
चारों तरफ।
नोट:
पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।
राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास
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