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चोर  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.
छिप कर पराई वस्तु का अपहरण करने वाला व्यक्ति। वह मनुष्य जो स्वामी की अनुपस्थिति या अज्ञानता में छिप पर कोई वस्तु या धन ले जाय। चोरी करने वाला। पर्या.--अलांम, एकागर, कुबधमूळ, कुबधी, गूढ़चर, चो'टौ, तेन, तसकर, दसु, निसचर, परमोख, परसंतोख, परासकंदी, पाटचर, पारपंथक, प्रतरोधक, प्रतिरोधक, मरमोख, मलमलुच, मलीमलुच।
  • मुहावरा--चोर माथै मोर पड़णौ--धूर्त के साथ धूर्तता करना।
  • कहावत--घणां चोरां चोरी मूंगी--अधिक चोर शामिल होने पर चोरी महंगी पड़ जाती है। अधिक चोरों के इकट्ठे होने पर पकड़े जाने की संभावना रहती है। अति सर्वत्र वर्जयते।
  • कहावत--2.चोर का पग काचा होवै--चोर के मन में दृढ़ता नहीं होती।
  • कहावत--3.चोर कै पग को होवै नी--देखो कहा.2।
  • कहावत--4.चोर कौ माल चिंडाळ खाय--चोरी से प्राप्त किया हुआ माल दुष्टों द्वारा भी नष्ट होता है अर्थात्‌ चोरी से प्राप्त हुआ धन सदुपयोग नहीं होता। बुरी कमाई की निंदा।
  • कहावत--5.चोर-चोर मासिया भाई--कुकर्म करने वाले या दुष्ट स्वभाव वाले परस्पर मिल कर रहते हैं।
  • कहावत--6.चोर ढोर ना सूं भरोसा करणौ--चोर और पशु का भरोसा नहीं किया जा सकता, न मालूम वे कब हानि पहुँचा दें।
  • कहावत--7.चोर रा तौ सौ दा'ड़ा धणी नौ एक दा'ड़ौ--पकड़े जाने पर सौ चोरियों की कसर एक साथ निकल जाती है। बुरे कार्यों का फल हमेशा अनुकूल नहीं होता।
  • कहावत--8.चोर नै कह चोरी कर, कुत्तै नै कह भुस, साह नै कह जाग--उस व्यक्ति के प्रति जो हर प्रकार के स्वभाव वाले व्यक्ति से मिलकर रहे। बुरे कार्य के लिऐ उकसाने वाले उस बुरे व्यक्ति के प्रति जो अवसर पाने पर उसे हानि भी पहुंचा दे।
  • कहावत--9.चोर रा पग चोर ओळखै--चोर की गति को चोर ही समझता है। दुष्ट व बुरा व्यक्ति अपने स्वभाव वाले को शीघ्र पहचान जाता है।
  • कहावत--10.चोर री दाढ़ी में तिणकलौ--किसी मनुष्य में कोई अवगुण हो और उसके समक्ष किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसी अवगुण की आलोचना की जाय तो वह अपने ही ऊपर समझ कर जब बिगड़ने लगता है तब यह कहावत कही जाती है।
  • कहावत--11.चोर री मां छांनै छांनै रोवै--चोर की मां छिप कर रोती है। चोर को जब किसी प्रकार की सजा होती है तो उसकी मां छिप कर रोती है, इसलिये कि कहीं चोर के साथ पुत्र का नाता प्रकट न हो। बुरे व्यक्तियों से अपना संबंध साधारणत: लोग प्रकट नहीं करते।
  • कहावत--12.चोर री मां नै हीज मारणी--बुरे आदमी को नहीं बल्कि बुराई के मूल कारण को ही नष्ट करना चाहिये।
  • कहावत--13.मिनखां में चोर छांनां को रैवै नी--मनुष्यों में चोर छिपा नहीं रह सकता, वह अपने अमानवीय या अस्वाभाविक व्यवहार से अपने आपको प्रकट कर ही देता है।
यौ.
कांमचोर, चोरआळौ, चोरखिड़की, चोरगळी, चोरगाय, चोरचकार, मुंहचोर।
अल्पा.
चोरड़ौ, चोरटौ।
2.लीपने-पोतने के कार्य में असावधानी से रह जाने वाला बिना लिपा-पुता भाग।
3.ताश का वह पत्ता जिसे छिपाये रखने के दूसरे खिलाड़ियों को जीतने में बाधा पड़ती है।
4.एक गंध द्रव्य।
5.एक प्रकार का सर्प। वि.वि.--देखो 'पीणौ'। वि.--
1.जिसके वास्तविक स्वरूप का बाह्य आकार से पता न चले।
2.काला, श्याम* (डिं.को.)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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