सं.पु.
सं.चतुष्क, प्रा.चउक्क
1.चौकोर खुली भूमि।
2.नगर या गांव के बीच का वह खुला मैदान जिसके चारों ओर रास्ता गया हो, चौराहा।
- उदा.--चौक गोकळै तणै साय बैठौ चडी, गरड़धुज भुयंग जमराव रौ धणी।--रुषमणी हरण
3.घर के अंदर का वह खुला स्थान जिसके ऊपर किसी प्रकार का छाजन न हो। आँगन, सहन।
4.चार कोने वाला चबूतरा।
- उदा.--वीकैजी आ जागा आछी देखी तद तळाव री पाळ माथै स्री गोरैजी री मूरत पधराई, चौक करायौ।--द.दा.
5.मैदान, खुला स्थान।
- उदा.--आवध धारियां चौक पधारै छै।--रा.सा.सं.
- मुहावरा--1.चौक करणौ--मैदान की ओर प्रस्थान करना।
- मुहावरा--2.चौक पधारणौ--मैदान में आना, खुले स्थान की ओर गमन करना।
6.मांगलिक अवसर पर आंगन में या खुले स्थल में आटे, अबीर आदि से बनाये हुए रेखा चित्र।
- उदा.--ओपै रूप घणौ राय अंगण, चौक मुक्त कण केसर चंनण।--रा.रू.
- मुहावरा--चौक पूरणौ--आंगन या सहन में कल्पना के चित्र चित्रित करना।
7.पीठ।
- उदा.--तिकौ जसवंतजी रौ गळा मांहे हुयनै गुदड़ी रै पाखती उकसीयौ नै जसंवतजी उणरै छाती मांहै बरछी री दीधी सु उणरै चौक मां हाथ एक जाती बाहिर फूटी।--राव मालदेव री वात
8.धातु, काष्ट आदि की बनी हुई चौकी।
- उदा.--कनक चौक थाळह कनक, सांमिल दहू नरेसुरां। सांसत्रां जेम भोजन सतर, रीति आदि राजेस्वरां।--सू.प्र.
9.भूल, चूक।
- उदा.--कहियौ न्रप सिध हूं जोड़े कर, आयस हसे चौक किण ऊपर।--सू.प्र.