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छत  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.छत्र, प्रा.छत्त
1.कमरे की दीवारों पर पट्टियां रखकर उस पर चूना, कंकरीट आदि डाल कर बनाया हुआ फर्श। क्रि.प्र.--कूटणी, जमाणी, ढाकणी, बणणी।
2.घर के ऊपर का खुला भाग। (सं.क्षिति)
3.भूमि, पृथ्वी।
4.जगह, स्थान (सं.छटा)
5.शोभा, कांति।
  • उदा.--देख देख सगळी गत दाखी, भूप अभूत रूप क्षत भाखी।--रा.रू.
6.देखो 'छत्र' (2, 3) (रू.भे.) (सं.क्षत)
7.घाव।
  • उदा.--अर बड़ाहर रा प्रस्थांन रा समय रै पूरब ही आपरा अंग में छुरिका रा छत लगाय समस्त स्वादु द्रव्य मिळाय पूरब री तरह तप्त तैल रा कटाह में बराबर झंपा लेर भद्रकाळी नूं प्रसन्न करी।--वं.भा.
8.खतरा, जोखा।
  • उदा.--दळै न छत जो देस री, कदर न राखै कोय। हूं छतरी छतरिहुं भली, तपै न भीगै तोय।।--रेवतसिंह भाटी
9.व्रण, फोड़ा (सं.क्षत्र:)
10.प्रभुता, प्रधानता।
  • उदा.--मोह सराब खराब है, छत उमत छाकी।--केसोदास गाडण
सं.पु.--


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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