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छींट  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
सं.क्षिप्त, प्रा.छित्त
1.जल अथवा किस द्रव पदार्थ की बूंद, जल-कण।
2.किसी द्रव पदार्थ या जल की बूंद का पड़ा दाग या चिह्न।
3.विभिन्न रंगों से बेल-बूंटे व डिजाइन आदि छाप कर बनाया हुआ कपड़ा या कागज।
4.टुकड़ा, भाग, खण्ड।
  • उदा.--1..इतरै तौ आंण भेळिया सो लोग सारौ छींट छींट हुइ गयौ।--डाढाळा सूर री बात
  • उदा.--2..नैण पटक दूं ताळ में छींट-छींट हुय जाय। मैं तने नैणां कद कह्यौ, मन पहली मिळ जाय।--र.रा.
  • मुहावरा--1.छींट-छींट करणौ--अलग-अलग करना, तितर-बितर होना।
  • मुहावरा--2.छींट-छींट होणौ--खंड-खंड होना, छिन्न-भिन्न होना।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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