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छेद  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
सं.छिद्र
1.किसी वस्तु के फटने या उसमें सुई, कांटा आदि तीक्ष्ण वस्तु के आर-पार चुभने से होने वाला खाली स्थान। किसी वस्तु में वह शून्य या खाली स्थान जिसमें हो कर कोई वस्तु इस पार से उस पार निकल सके।--सूराख, छिद्र। क्रि.प्र.--करणौ, पाड़णौ, होणौ।
2.वह खाली स्थान जो किसी वस्तु या भूमि में कुछ दूर तक खोदने, काटने आदि से पड़ा हो। बिल, विवर।
3.ऐब, दोष, अवगुण। क्रि.प्र.--ढूंढ़णौ, देखणौ, मिळणौ। (सं.)
4.छेदन, काटने का काम
5.नाश, ध्वंश।
6.खंड, टुकड़ा (जैन)
7.छ: जैन आगम ग्रंथ।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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