सं.पु.
सं.छिद्र
1.किसी वस्तु के फटने या उसमें सुई, कांटा आदि तीक्ष्ण वस्तु के आर-पार चुभने से होने वाला खाली स्थान। किसी वस्तु में वह शून्य या खाली स्थान जिसमें हो कर कोई वस्तु इस पार से उस पार निकल सके।--सूराख, छिद्र। क्रि.प्र.--करणौ, पाड़णौ, होणौ।
2.वह खाली स्थान जो किसी वस्तु या भूमि में कुछ दूर तक खोदने, काटने आदि से पड़ा हो। बिल, विवर।
3.ऐब, दोष, अवगुण। क्रि.प्र.--ढूंढ़णौ, देखणौ, मिळणौ। (सं.)