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जगन  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
देखो 'जिगन' (रू.भे.) (डिं.को.)
  • उदा.--1..जेहा केहा ज्याग, हैवर राखोड़ा हुवै। ताजी दीजै त्याग, जस लीजै सोई जगन।--बां.दा.
  • उदा.--2..जोवै जां ग्रिहि ग्रिहि जगन जागवै, जगनि जगनि कीजै तप जाप। मारगि मारगि अंब मौरिया, अंबि अंबि कोकिल आलाप।--वेलि.
  • उदा.--3..झीण गंठजोड़ पट बांध कर झालियौ, जठै वर वींदणी हेत जोड़ी। चारणां तणौ वित धाड़ नै चालियौ, घालियौ जगन में विघन घोड़ी।--गिरवरदांन सांदू


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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