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जबरी  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
ज्यादती, अन्याय।
  • उदा.--1..जे रौ किंही रौ मुनसब ओछौ करै सो खांनजहाँ होवणै न देवै जबरी कर कराय देवै।--गौड़ गोपाळदास री वारता
  • उदा.--2..पण औ तौ रिसालौ खास छै, सगळौ लोग इणरै ताबै छै और मैं ही इहां रै ताबै सो सदा सूं जबरी करता रहै छै।--जयसिंह आंमेर रा धणी री वारता
2.अनुचित बात, कष्टदायक कार्य। वि.स्त्री.--देखो 'जबरौ' (रू.भे.) (पु.) क्रि.वि.--बलात्‌, जबरदस्ती।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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