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जरक  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.स्त्री.
1.मोच, चोट, खरोंच, घाव आदि.
2.प्रहार या प्रहार की ध्वनि।
  • उदा.--1..जमी पुड़ धरहरै उडै रूकां जरक, देख क्रपणां थरक पीठ दीधी।--रावत गुलाबसिंह चूंडावत रौ गीत
  • उदा.--2..सैंफळै लड़ै भड़ असुर सुर, जड़ै सेल खागां जरक। कौतक्क जेण देखै कळह, ऊभौ रथ थांभै अरक।--सू.प्र.
3.देखो 'जरख' (रू.भे.)
4.सोने के टुकड़े, स्वर्ण-खंड।
  • उदा.--3..अंतक तक भड़ भचक इक-इक, पड़ि जरक मुद गरक पासक।--सू.प्र.
रू.भे.
जरक्क। (अल्पा.)--जरकौ


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






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