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जात  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
वि.
उत्पन्न, जन्मा हुआ.
2.कुलीन। सं.पु.(सं.)
1.जीव, प्राणी। सं.स्त्री.(सं.यात्रा)
2.मनौती, अभिष्टपूर्ति पर किसी देवता की पूजा का संकल्प, मिन्नत।
  • उदा.--सेत्रू जो पिण गोहिलां रै छै। पालीतांणै सिवौ गोहिल छै, तिकौ जात करण आवै छै।--नैणसी
3.विवाहोपरान्त वर-वधू का देव-स्थानों पर देव तुष्ट-यर्थ जाना और नैवैध आदि चढ़ाना। क्रि.प्र.--करणी, दैणी।
4.यात्रा, तीर्थ यात्रा।
  • उदा.--1..जात करण जगदीस री, ईस नवै परकार। चैत मास पख चांदणै, 'अजन' थयौ असवार।--रा.रू.
  • उदा.--2..अकबर पातिसाह ख्वाजा री जात आयौ थौ तरै मिळिया।--राव चंद्रसेन री वात
5.देखो 'जाति' (रू.भे.)
  • मुहावरा--जात जणाणौ, जात जताणौ--जाति स्वभाव प्रकट करना।
अल्पा.
जातड़ली, जातड़ी।


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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