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जिंद  
शब्दभेद/रूपभेद
व्युत्पत्ति
शब्दार्थ एवं प्रयोग
सं.पु.
अ.जिन
1.प्रेत।
  • उदा.--वांसै हाथ दिया नै कह्यौ--काळै वागै, काळी टोपी, वैहल रै काळी खोळी, काळा बळद जोतरियां, जिंदा रै रूप कियां सांम्हा मिळसी।--नैणसी
2.प्राण, जीव।
  • उदा.--के गाडै के जंगळि जाळै, पूठा वैसे आय वे। जन हरिदास कहे विणजारिया, भी जिंद अकेला जाय वे।--ह.पु.वा.
3.शरीर।
  • उदा.--जुदा हुअै जिंद जीव, म्रिग खग आमूझै मरै। मारगि वहते मांडिऔ, दांणव प्रळै दईव।--वचनिका
रू.भे.
जिंदु, जिंदौ।
अल्पा.
जिंदड़ी।
(फा.जिल्द:)


नोट: पद्मश्री डॉ. सीताराम लालस संकलित वृहत राजस्थानी सबदकोश मे आपका स्वागत है। सागर-मंथन जैसे इस विशाल कार्य मे कंप्युटर द्वारा ऑटोमैशन के फलस्वरूप आई गलतियों को सुधारने के क्रम मे आपका अमूल्य सहयोग होगा कि यदि आपको कोई शब्द विशेष नहीं मिले अथवा उनके अर्थ गलत मिलें या अनैक अर्थ आपस मे जुड़े हुए मिलें तो कृपया admin@charans.org पर ईमेल द्वारा सूचित करें। हार्दिक आभार।






राजस्थानी भाषा, व्याकरण एवं इतिहास

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